रंगमंचीय क्रांति की एक झलक:  “जब मूक मूर्तियाँ बोल पड़ीं…”

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जमशेदपुर : यूनिटी रंग महोत्सव 2025 दाउदनगर, औरंगाबाद (बिहार) में आयोजित यूनिटी रंग महोत्सव – 2025 के मंच पर एक अद्वितीय नाटक ने दर्शकों के दिल-दिमाग को झकझोर कर रख दिया।


“म्यूजियम ऑफ स्पीसीज इन डेंजर” — यह नाटक एक कलात्मक प्रस्तुति नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना की मशाल बन गया।

क्या होगा जब इतिहास की स्त्रियाँ आज के समाज से सवाल करने लगे?
क्या होगा जब सीता, भवरी देवी, शूर्पणखा, और आज की मुस्लिम महिला, गुनिया या नेहा मंच पर उतर कर अपने अनुभव बाँटें?

नाटक की खास बातें:

यह प्रस्तुति त्रेता, द्वापर और कलियुग से होते हुए आज की स्त्री की यात्रा को दर्शाती है। प्रतीकात्मक और व्यंग्यात्मक शैली के माध्यम से यह नाटक नारी जीवन के संघर्षों और विरोधाभासों को उजागर करता है। यह न केवल पीड़ा की कथा है, बल्कि आत्मबल की मशाल भी है।

स्त्री का स्वर:

“मैं म्यूजियम की निर्जीव मूर्ति नहीं…
मैं सृजन की सबसे मौलिक भाषा हूँ!”

नाटक में स्त्रियाँ केवल पीड़िता नहीं थीं — वे अपने भाग्य की निर्माता थीं। तमाम अन्यायों के बावजूद उन्होंने कल्पना चावला, सानिया मिर्जा, किरण बेदी, संतोष यादव, सुनीता विलियम्स जैसी मिसालें कायम कीं।

मुख्य पात्र :

  • अनन्या राज – सीता / भवरी देवी
  • अनुष्का कश्यप – शूर्पणखा
  • प्रिया यादव – शीरीन / गुनिया
  • नताशा – नेहा
  • सुषमा प्रमाणिक – मुस्लिम महिला
  • पूजा – कन्या / रिंकू
  • सुमन नायक – सूत्रधार

🎼 गायन मंडली: श्यामदेव, अंकिता, आयशा
🎤 मंच आलोक: खुर्शीद आलम
🎶 पार्श्व संगीत: नीतीश राय

🎬 निर्देशन:

इस अविस्मरणीय प्रस्तुति को निर्देशित किया नाट्य संस्था “पथ” के निदेशक मोहम्मद निज़ाम ने। उनके निर्देशन में यह नाटक केवल रंगमंच नहीं रहा, बल्कि विवेक, प्रतिरोध और पुनर्नवा की पुकार बन गया।

दर्शकों के मन में उठे सवाल:

“कब तक?”, “क्यों?”, “अब क्या?” नाटक के अंत में यही सवाल दर्शकों की आत्मा में गूंजते रहे, यह प्रस्तुति एक बात स्पष्ट कर गई — नारी को अब मूक नहीं रखा जा सकता। वह बोलती है, गढ़ती है, और समाज को आईना दिखाती है।

 

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