पोटका : हरिणा पंचायत के नारायणपुर गांव में श्रावण संक्रांति के अवसर पर आयोजित वर्ष की पहली मनसा पूजा में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी। पूरे गांव का माहौल भक्ति और परंपरा से सराबोर दिखा।
ऐतिहासिक परंपरा से जुड़ी पूजा
मुख्य पुजारी सुकुमार मंडल ने बताया कि करीब ढाई सौ वर्ष पूर्व जब वर्धमान से कुछ परिवार यहां आकर बसे थे, तब उन्होंने मां मनसा देवी को गांव की इष्ट देवी के रूप में प्रतिष्ठित किया। तभी से यह पूजा निरंतर परंपरा के साथ की जाती आ रही है।
तीन चरणों में होता है पूजन
मां मनसा देवी की पूजा तीन अलग-अलग चरणों में की जाती है
- तुलसी मंच
- हांड़ी थान
- वारी एवं स्थाई स्थापित प्रतिमा
संक्रांति के दिन मां की वारी विशेष विधि-विधान से लाई जाती है। इसके बाद दूसरे दिन गांव के सभी परिवार सामूहिक रूप से भोजन पकाकर भोग स्वरूप अर्पित करते हैं।
बासी अन्न प्रसाद की परंपरा
पूजा के दूसरे दिन किसी चयनित घर में हांड़ी पूजा आयोजित की जाती है। इसके बाद बासी अन्न प्रसाद मां को अर्पित किया जाता है और हर घर में बांटा जाता है। परंपरा के अनुसार, गांव का हर परिवार और कुटुंब इस प्रसाद का सेवन करता है। पूजा के अंतिम चरण में बली का भी आयोजन होता है।
नाग पूजा की अनोखी परंपरा

इस पूजा की सबसे खास परंपरा है—सांपों की पूजा।
संक्रांति से एक सप्ताह पहले गांववाले नाग सांपों को पकड़कर पूजन करते हैं। पूजा के दौरान इन्हें भक्तों को दर्शन कराया जाता है और फिर पूजा समाप्त होने के एक सप्ताह बाद उन्हें जंगल में सुरक्षित छोड़ दिया जाता है।
श्रद्धा और आस्था का संगम
मनसा पूजा न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह गांव की सामाजिक एकजुटता और परंपराओं का भी प्रतीक है। भक्तों ने आस्था और विश्वास के साथ मां मनसा देवी की पूजा-अर्चना की और सुख-समृद्धि की कामना की।






