झारखंड में सामाजिक समरसता और न्यायसंगत विकास की दिशा में आज भी कई गंभीर चुनौतियाँ विद्यमान हैं। राज्य के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और रोजगार के अवसरों में असमानता ने समाज के विभिन्न वर्गों के बीच दूरी और गहरी कर दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि केवल प्रशासनिक पहल पर्याप्त नहीं हैं; इसके लिए समाज के हर स्तर पर जागरूकता, सतत निगरानी और सक्रिय सहभागिता आवश्यक है। शिक्षा के क्षेत्र में प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षा तक समान अवसर की कमी ने समाज में अंतरवर्गीय विभाजन को बढ़ावा दिया है। कई ग्रामीण इलाकों में स्कूलों की अव्यवस्थित स्थिति, शिक्षकों की अपर्याप्त संख्या और संसाधनों की कमी ने बच्चों के समग्र विकास में बाधा उत्पन्न की है। वहीं, स्वास्थ्य सेवाओं में असमान वितरण और बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता ग्रामीण और आदिवासी समुदायों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है।
महिला सशक्तिकरण की दिशा में राज्य में कई योजनाएँ लागू की गई हैं, लेकिन सामाजिक और सांस्कृतिक बाधाओं के कारण महिलाएँ पूरी तरह अवसरों का लाभ नहीं उठा पा रही हैं। रोजगार और स्वरोजगार के अवसरों में असमानता युवाओं की प्रतिभा और क्षमता को उचित दिशा नहीं दे पा रही, जिससे बेरोजगारी और आर्थिक असुरक्षा की समस्या लगातार बनी हुई है।
समाजशास्त्रियों का सुझाव है कि इन चुनौतियों का समाधान केवल सरकारी योजनाओं पर निर्भर नहीं रहकर किया जा सकता। प्रत्येक वर्ग को जागरूक बनाना, समुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना और नीतिगत सुधार लागू करना जरूरी है। शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में नवाचार, तकनीकी साधनों का सही उपयोग और स्थानीय नेतृत्व की सक्रिय भागीदारी सामाजिक सुधार में निर्णायक भूमिका निभा सकती है। विशेषज्ञों का निष्कर्ष है कि झारखंड के सामाजिक विकास में संतुलन, समान अवसर और न्यायसंगत नीतियाँ ही स्थायी प्रगति की कुंजी हैं। यदि प्रशासन, समाज और नागरिक एकजुट होकर सुधारात्मक कदम उठाएँ, तो यह राज्य सामाजिक असमानताओं को कम कर सकता है और न्यायसंगत विकास का उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है।





