पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और राज्य का सियासी परिदृश्य इस बार अप्रत्याशित मोड़ ले रहा है। केवल एनडीए और महागठबंधन के बीच का मुकाबला नहीं रह गया है, बल्कि प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी के मैदान में उतरने से पूरी तस्वीर बदल गई है। यह पार्टी पहली बार 243 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और कई क्षेत्रों में तीसरे मोर्चे की मज़बूत दावेदार बनकर उभर रही है।
पूर्णिया क्षेत्र की 24 सीटों पर मुस्लिम आबादी लगभग 46% और अनुसूचित जाति की 14% है। पिछले चुनाव में एनडीए ने 12 सीटें जीती थीं और महागठबंधन ने 7 सीटों पर कब्जा किया था। इस बार भी यहां समीकरण ज्यादा नहीं बदल रहे हैं, और जन सुराज का प्रभाव नगण्य दिखाई दे रहा है। इसलिए पूर्णिया में चुनावी परिदृश्य स्थिर बना हुआ है।
भोजपुर की 22 सीटों पर मुस्लिम आबादी 9% और अनुसूचित जाति की 22% है। 2020 में महागठबंधन ने 19 सीटें जीती थीं और एनडीए केवल 2 सीटों तक सीमित था। इस बार एनडीए को बढ़त मिलने की संभावना है, लेकिन सबसे बड़ी कहानी है जन सुराज पार्टी की एंट्री, जो चुनावी माहौल को पूरी तरह बदल सकती है।
सारण की 24 सीटों पर मुस्लिम और अनुसूचित जाति दोनों की आबादी लगभग 15-15% है। पिछले चुनाव में एनडीए ने 9 और महागठबंधन ने 15 सीटें जीती थीं। इस बार भी दोनों गठबंधन कड़ी टक्कर में हैं, लेकिन जन सुराज की नई चुनौती समीकरण बदलने की संभावना को बढ़ा रही है।
पटना क्षेत्र की 21 सीटों पर मुस्लिम आबादी 7% और अनुसूचित जाति 22% है। पिछले चुनाव में एनडीए ने 11 और महागठबंधन ने 10 सीटें जीती थीं। इस बार स्थिति लगभग वैसी ही है, लेकिन जन सुराज की पकड़ तेजी से बढ़ रही है और किसी भी सीट पर बड़ा उलटफेर कर सकती है।
ओवरऑल सर्वे के अनुसार, एनडीए 47 सीटों पर आगे दिख रही है और महागठबंधन 19 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। हालांकि यह स्थिति 2020 जैसी लगती है, लेकिन जन सुराज के मैदान में उतरने से चुनाव कहीं भी पलट सकता है।
इस चुनाव को अप्रत्याशित बनाने वाले कई कारण हैं। नीतीश कुमार के लंबे शासन और युवाओं में बेरोजगारी के कारण सत्ता विरोधी लहर तेज़ है। जातिगत समीकरण, जैसे मुस्लिम, यादव, दलित और अगड़ी जातियों के बीच नए सिरे से ध्रुवीकरण, राजनीतिक लड़ाई को और पेचीदा बना रहा है। तीसरी ताक़तों का उभार – जैसे जन सुराज, आम आदमी पार्टी और बीएसपी – पूरे समीकरण में नए रंग भर रहे हैं। वहीं, एनडीए की संगठित चुनावी रणनीति और केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ भी उनके पक्ष में काम कर रहा है। महागठबंधन को सत्ता विरोधी लहर और जातीय समीकरणों पर अपनी उम्मीदें टिकी हैं।
बिहार का यह चुनाव किसी भी दिशा में जा सकता है। एनडीए की स्थिर चुनावी मशीन, महागठबंधन का युवा समर्थन और जन सुराज की नई ऊर्जा – इन तीनों के बीच यह मुकाबला बिहार की राजनीति का सबसे रोमांचक और अप्रत्याशित अध्याय साबित होगा।





