Bihar Politics: जैस-जैस बिहार 6 और 11 नवंबर को विधानसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है, नई रिसर्च बताती है कि राज्य के मतदाता परंपरागत सोच से हटकर रणनीतिक फैसले ले रहे हैं। कई बार वे अपराधी रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों को वोट देते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि ये नेता “काम कर सकते हैं।” वहीं, जातिगत या वंशवादी पार्टियों के प्रति निष्ठा तब कमजोर हो जाती है, जब उम्मीदवारों की साख धूमिल हो।
बर्सिलोना विश्वविद्यालय के पोस्ट-डॉक्टरल फेलो अभिनव खेमका ने सितामढ़ी और मुज़फ़्फ़रपुर में 2,000 मतदाताओं का सर्वे किया। इसके साथ ही उन्होंने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) के तहत परियोजनाओं के आवंटन और पूरा होने का विश्लेषण किया। रिपोर्ट में दिखा कि अपराधी नेताओं वाले क्षेत्रों में परियोजनाओं की पूर्णता दर 68% कम थी, जबकि कार्य आवंटन 36% बढ़ा। इससे स्पष्ट होता है कि नेता दिखावटी रोजगार और दृश्य लाभ पर ध्यान केंद्रित कर वोटरों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करते हैं।
बिहार की राजनीति दशकों से “स्ट्रांगमैन एरा” से प्रभावित रही है। 1970 के दशक में मसलमैन उम्मीदवारों ने चुनावी परिदृश्य बदल दिया और आज भी कई अपराधी-पारिवारिक राजनीतिक परिवार राज्य में सक्रिय हैं। वर्तमान में विधानसभा के 70% विधायक किसी न किसी आपराधिक मामले में फंसे हैं, जिनमें हत्या, हत्या का प्रयास और महिलाओं के खिलाफ अपराध शामिल हैं।
खेमका के अध्ययन में वंशवादी नेताओं की जवाबदेही पर भी सवाल उठाए गए। सिर्फ 4% विधायकों ने मतदाताओं की ईमेल के माध्यम से पूछी गई शिकायतों का जवाब दिया। वंशवादी प्रतिनिधि गैर-वंशवादियों से 6.8% कम उत्तरदायी पाए गए।
अध्ययन में बिहार की चुनावी राजनीति में “कैश और क्लाउट” का महत्व भी उजागर हुआ। अपराधी नेता अपनी संपत्ति और प्रभाव का इस्तेमाल करके श्रम-प्रधान परियोजनाओं को प्राथमिकता देते हैं और मतदाताओं के साथ ग्राहक-संबंध कायम करते हैं। इससे अपराध बढ़ता है, लेकिन मतदाता शासन और सेवा वितरण में व्यावहारिक और रणनीतिक भूमिका निभाते हैं।





