जमशेदपुर: हृदय रोग आज वैश्विक स्तर पर मृत्यु का प्रमुख कारण बन चुके हैं और यह प्रवृत्ति झारखंड सहित भारत के कई हिस्सों में तेजी से बढ़ रही है। हर वर्ष लगभग 1 करोड़ लोगों की मृत्यु हृदय संबंधी बीमारियों के कारण होती है। पहले बुज़ुर्गों की बीमारी मानी जाने वाली हृदय समस्याएँ अब 30 से 40 वर्ष के युवाओं में भी देखने को मिल रही हैं, जिनमें एक्यूट कोरोनरी सिंड्रोम, हार्ट फेल्योर और अरीथमिया शामिल हैं।
2004 में लांसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार दक्षिण एशियाई आबादी में मायोकार्डियल इंफार्क्शन औसतन 53 वर्ष की उम्र में होता है, जो अन्य आबादियों की तुलना में लगभग एक दशक पहले है। इस बदलती प्रवृत्ति ने स्वास्थ्य प्रणालियों और परिवारों पर सामाजिक और आर्थिक बोझ बढ़ाया है।
हृदय रोगों के बढ़ते मामलों के पीछे कई कारण हैं। पारंपरिक जोखिम जैसे हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, धूम्रपान और डिस्लिपिडेमिया आज भी व्यापक रूप से मौजूद हैं। जीवनशैली से जुड़े कारण जैसे लंबे समय तक बैठे रहना, लंबे कार्य घंटे और अस्वास्थ्यकर भोजन समस्याओं को और गंभीर बना रहे हैं। मनो-सामाजिक तनाव भी हृदय रोग की घटनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आनुवंशिक प्रवृत्ति के कारण दक्षिण एशियाई आबादी में इंसुलिन रेज़िस्टेंस, पेट के आसपास मोटापा और छोटे घने LDL कण अधिक पाए जाते हैं, जो रोग की संभावना बढ़ाते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि रोकथाम सबसे प्रभावी उपाय है। इसमें तंबाकू पर कर, नमक और ट्रांस फैट की खपत कम करना, फास्ट फूड और अस्वास्थ्यकर वसा से परहेज़ करना शामिल है। आहार में सब्ज़ियाँ, फल और साबुत अनाज शामिल करने से हृदय रोग का खतरा काफी हद तक कम किया जा सकता है।
क्लिनिकल दृष्टिकोण से समय पर जोखिम मूल्यांकन और कार्यस्थल व समुदाय आधारित स्वास्थ्य जाँच महत्वपूर्ण हैं। डिजिटल हेल्थ टूल्स, रिमोट मॉनिटरिंग और AI आधारित ईसीजी इंटरप्रिटेशन से अरीथमिया और हाइपरटेंशन की शुरुआती पहचान में मदद मिलती है। चेतावनी संकेत जैसे साँस फूलना, सीने में दर्द, तेज़ धड़कन और अत्यधिक पसीना कभी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।
टीएमएच का कार्डियोलॉजी विभाग इस चुनौती का समाधान पेशेवर दृष्टिकोण के साथ कर रहा है। वर्ष 2015 में शुरू की गई कार्डियक कैथ लैब ने पिछले दशक में 20,000 से अधिक कार्डियक प्रक्रियाएँ सफलतापूर्वक संपन्न की हैं, जिनमें जटिल एंजियोप्लास्टीज़ और न्यूनतम इनवेसिव तकनीकें शामिल हैं। आधुनिक तकनीकों जैसे इंट्रावेस्कुलर इमेजिंग, रोटेशनल एथेरेक्टॉमी, बाईफ़र्केशन स्टेंटिंग और इंट्रावेस्कुलर लिथोट्रिप्सी की मदद से कई मामलों में बायपास सर्जरी से भी बचा जा सका है।
सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. तपन कुमार के अनुसार, हृदय रोगों की बढ़ती प्रवृत्ति चिंता का विषय है लेकिन यह अपरिवर्तनीय नहीं है। समय पर जागरूकता, जीवनशैली में सुधार और आधुनिक चिकित्सकीय हस्तक्षेपों के संयोजन से इस चुनौती का समाधान संभव है। टीएमएच की यह पहल झारखंड और आसपास के क्षेत्रों में हृदय रोगियों को घर के करीब विश्व-स्तरीय उपचार प्रदान करने में महत्वपूर्ण उदाहरण बन चुकी है।





