जापान को दुनिया भरोसेमंद देशों की सूची में शीर्ष पर रखता है। इसकी सबसे बड़ी वजह है वहां बेचे जाने वाले उत्पादों की पारदर्शिता। जापान में उत्पाद के पैकेट पर जो तस्वीर और जानकारी छपी होती है, पैकेट खोलने पर ठीक वही क्वालिटी और वही साइज ग्राहक को मिलता है। कंपनियाँ यह सुनिश्चित करती हैं कि उपभोक्ता को शिकायत का एक भी मौका न मिले। ठीक इसका उल्टा भारत की तस्वीर काफी निराश करने वाली है। यहां कई कंपनियाँ पैकेट पर उम्मीदें बेचती हैं और अंदर निराशा बंद करती हैं। प्रिंट पर दिखाया जाने वाला आकर्षक आकार और क्वालिटी, असल में मिलते समय गायब हो जाती है। सच्चाई ये है कि जहां कंपनियों को ग्राहकों से डरना चाहिए, वहीं भारत में ग्राहक कंपनियों से डरने लगे हैं।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि भारत में कई ब्रांड्स रियल और नेचुरल के नाम पर नकली, आर्टिफिशियल और केमिकल-आधारित उत्पाद बेच रहे हैं। ये चीज़ें स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं, लेकिन कंपनियाँ पैकेट पर छोटे-छोटे डिस्क्लेमर लिखकर कानूनी जिम्मेदारी से बच निकलती हैं। उपभोक्ता विज्ञापनों में दिखाई जाने वाली चमक-दमक के बहकावे में उत्पाद खरीद लेते हैं और लगातार ठगे जाते रहते हैं।
भारतीय उपभोक्ता बाजार आज दुनिया के सबसे बड़े बाजारों में एक है, लेकिन भरोसे और ईमानदारी के पैमानों पर अभी भी कहीं पीछे खड़ा है। सवाल यह उठता है कि जब जापान जैसे देश में कंपनियाँ नियमों का पालन कर उपभोक्ताओं का सम्मान करती हैं, तो भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? सुधार की जरूरत सिर्फ कंपनियों में ही नहीं, बल्कि उपभोक्ताओं की जागरूकता में भी है। जब जनता सवाल पूछना सीखेगी और गलत उत्पादों को नकारना शुरू करेगी, तभी कंपनियाँ भी ईमानदार होने को मजबूर होंगी।
सोशल मीडिया पर सामने आए इस वीडियो ने भारत और जापान के उपभोक्ता अनुभवों की तुलना पर नई चर्चा शुरू कर दी है।
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