दिखावे वाला फिटनेस कल्चर बन रहा है शरीर का दुश्मन।

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Ansuman Bhagat is an experienced Hindi author and Senior Content Writer known for his fluent and impactful writing in modern Hindi literature. Over the past seven...
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फिटनेस नहीं अब दिखावा ज़्यादा, अहंकार और गलत तकनीक के इस दौर में जिम बन गया है ‘ईगो ज़ोन’।

आजकल सोशल मीडिया पर फिटनेस दिखाने की होड़ में लोग वीडियो बनाने के चक्कर में गलत तकनीक से एक्सरसाइज़ कर बैठते हैं। और अगर कोई उन्हें यह समझाए कि फॉर्म या तरीका गलत है, तो जवाब में अक्सर यही सुनने को मिलता है – “मैं तो ट्रेनर के ऑब्ज़र्वेशन में कर रहा हूँ।”

क्या आप जानते हैं, आज की सबसे बड़ी समस्या क्या है? किसी को सही ज्ञान देना।
तो आइए, आपको भी इस विषय से अवगत कराते हैं ताकि आप खुद को इस दिखावे वाले फिटनेस फरेब से बचा सकें और अपने स्वास्थ्य को नुकसान से दूर रख सकें।

सोशल मीडिया और सस्ते जिम कल्चर ने फिटनेस की परिभाषा ही बदल दी है। अब जिम जाना कई लोगों के लिए सेहत सुधारने से ज़्यादा, वीडियो शूट और दिखावे का माध्यम बन गया है। ट्रेंडिंग म्यूज़िक और वायरल वर्कआउट क्लिप्स के बीच सही फॉर्म, तकनीक और सेफ्टी की अहमियत धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है।

कई लोग बिना किसी प्रमाणित ट्रेनर के इंटरनेट से देखी एक्सरसाइज़ अपनाते हैं, जिससे शरीर पर गलत असर पड़ता है। गलत फॉर्म से मसल्स स्ट्रेन, बैक इंजरी, और लिगामेंट डैमेज जैसी समस्याएँ आम होती जा रही हैं। यही नहीं, कई लोग बिना चिकित्सकीय सलाह के डाइट या सप्लीमेंट लेना शुरू कर देते हैं, जिससे शरीर में पोषण असंतुलन और लंबे समय तक नुकसान की स्थिति बन जाती है।

फिटनेस सिर्फ मेहनत नहीं बल्कि समझदारी का खेल है। सही ट्रेनर, सही फॉर्म और सही डाइट के बिना शरीर को मजबूत करने की कोशिश उल्टा असर डाल सकती है।

जो लोग फिटनेस में नए हैं, उन्हें चाहिए कि शुरुआत में किसी सर्टिफाइड ट्रेनर से बेसिक ट्रेनिंग लें, ताकि तकनीक और शरीर की क्षमता के अनुसार वर्कआउट तय किया जा सके। “जिम सिर्फ ताकत दिखाने की जगह नहीं, बल्कि अनुशासन और जागरूकता का प्रतीक होना चाहिए,” 

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