महाराज जी ने एक शराबी को क्यों किया प्रणाम, जब नशे में डूबे व्यक्ति के शब्दों में मिला भगवान का संदेश

वृंदावन के संत महाराज जी की प्रेरक घटना, जानिए क्यों उन्होंने एक शराबी को प्रणाम किया और नशे में डूबे व्यक्ति के शब्दों में पाया जीवन का गूढ़ संदेश।

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गंगा किनारे की वो घटना जिसने भक्ति का अर्थ ही बदल दिया।

कभी-कभी जीवन में मिलने वाली छोटी-सी घटनाएँ भी हमें ऐसी सीख दे जाती हैं जो पूरी ज़िंदगी का दर्शन समझा जाती हैं। वृंदावन के रसिक संत परम पूज्य महाराज जी की एक ऐसी ही कहानी आज भी लोगों के हृदय में बसती है, जब उन्होंने एक शराबी व्यक्ति को साष्टांग प्रणाम किया। यह घटना जितनी चौंकाने वाली लगती है, उतनी ही गहराई से यह जीवन और भक्ति का अर्थ समझा जाती है।

एक दिन महाराज जी गंगा किनारे ध्यानमग्न होकर बैठे थे। सूर्य की किरणें गंगा की लहरों पर सुनहरी चमक बिखेर रही थीं और चारों ओर मंत्रों की गूंज थी। तभी एक नशे में डगमगाता व्यक्ति उनके पास आ पहुंचा। उसकी चाल और बोली से साफ़ था कि उसने शराब पी रखी थी। उसने जोर से आवाज़ लगाई “ए बाबा, चलो!”

पहले तो महाराज जी मौन रहे, लेकिन उनके मन में एक विचार कौंधा “कहीं ये ईश्वर ही किसी रूप में तो नहीं आए हैं?” वे उठे और उसके साथ चल पड़े।

वह व्यक्ति उन्हें पास के वैकुंठ धाम के सामने ले गया। वहाँ भगवान की संगमरमर की मूर्ति खड़ी थी। शराबी ने मूर्ति की ओर इशारा किया और पूछा,
“देख रहे हो इसे? ये किससे बनी है?”

महाराज जी ने शांत स्वर में कहा, “संगमरमर से।” वह मुस्कराया और बोला, “संगमरमर का एक पत्थर पैरों के नीचे रौंदा जाता है, और एक भगवान बनकर पूजता है। फर्क बस इतना है – एक तिल-तिल काटा गया, लेकिन टूटा नहीं… इसलिए आज भगवान बन गया।

इन शब्दों ने महाराज जी को भीतर तक हिला दिया। उन्होंने तुरंत उस शराबी को साष्टांग प्रणाम किया। उपस्थित लोगों को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि एक संत, जिसने अपना जीवन संयम और साधना को समर्पित किया, वह एक शराबी को प्रणाम कैसे कर सकता है।

महाराज जी ने मुस्कराते हुए कहा, “यह कोई साधारण व्यक्ति नहीं था। यह तो स्वयं भगवान का भेजा हुआ संदेशवाहक था। सही बात जहाँ से मिले, उसे विनम्रता से स्वीकार करना चाहिए, चाहे वह किसी पागल, गरीब या शराबी से ही क्यों न हो।”

उन्होंने आगे कहा, “हम जब मिठाई खरीदते हैं, तो यह नहीं पूछते कि मिठाईवाला खुद मिठाई खाता है या नहीं। हम सिर्फ स्वाद देखते हैं। वैसे ही अच्छी बात को अपनाने के लिए यह मत देखो कि कहने वाला कौन है, बस यह देखो कि बात कितनी सच्ची है।”

गंगा तट की वह दोपहर आज भी भक्ति मार्ग की एक अमर सीख बन चुकी है। महाराज जी ने साबित कर दिया कि आध्यात्मिकता का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि हर रूप में ईश्वर को पहचानना है।

उन्होंने उस दिन एक गहरी सच्चाई को उजागर किया “जो इंसान तिल-तिल कटने के बाद भी नहीं टूटता, वही भगवान के समान पूजनीय बनता है।”

यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि भक्ति का सार बाहरी दिखावे में नहीं, बल्कि उस दृष्टि में है जो हर व्यक्ति में ईश्वर को देख सके।

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