मुंबई : 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने विशेष टाडा न्यायालय के फैसले को पलटते हुए 12 दोषियों को बरी कर दिया है। इनमें से 5 को पहले मौत की सजा और 7 को उम्रकैद सुनाई गई थी।
अब अदालत ने इन्हें निर्दोष करार देते हुए तत्काल रिहाई का आदेश दिया है। यह फैसला उस भयावह त्रासदी के करीब दो दशक बाद आया है, जिसने पूरे देश को झकझोर दिया था।
न्यायिक जांच पर सवाल: गवाहों पर अविश्वास, सबूतों में खामियां
जस्टिस अनिल किलोर और जस्टिस श्याम चांदक की विशेष खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष इन 12 आरोपियों की विस्फोटों में संलिप्तता सिद्ध करने में पूरी तरह विफल रहा है। न्यायालय ने अभियोजन पक्ष के गवाहों को अविश्वसनीय बताया और उनके बयानों में गंभीर खामियों की ओर इशारा किया। खंडपीठ ने कहा कि टैक्सी चालकों और ट्रेन में मौजूद यात्रियों द्वारा घटनाक्रम के 100 दिन बाद दिए गए बयान विश्वसनीय नहीं माने जा सकते।
साथ ही कोर्ट ने बम, बंदूक और नक्शों जैसी बरामदगी को भी कमजोर साक्ष्य मानते हुए यह कहा कि अभियोजन यह भी साबित नहीं कर सका कि विस्फोटों में किस तरह के बमों का प्रयोग हुआ था। इस आधार पर अदालत ने सभी दोषियों को संदेह का लाभ देते हुए तत्काल प्रभाव से रिहा करने का निर्देश दिया।
क्या था 2006 मुंबई लोकल ट्रेन ब्लास्ट मामला?
11 जुलाई 2006 को शाम करीब 6:24 से 6:35 बजे के बीच मुंबई की सात अलग-अलग लोकल ट्रेनों में प्रेशर कुकर और RDX से तैयार बमों से विस्फोट किए गए थे। धमाके खार, बांद्रा, जोगेश्वरी, माहिम, मीरा रोड, माटुंगा और बोरीवली जैसे व्यस्त स्टेशनों पर हुए। इस भयावह हमले में 189 से अधिक लोगों की मौत हुई थी, जबकि 800 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
मामले की जांच महाराष्ट्र एटीएस को सौंपी गई थी, जिसने गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम (UAPA) और टाडा कानून के तहत 13 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। वर्ष 2015 में विशेष टाडा अदालत ने इनमें से 12 आरोपियों को दोषी करार देते हुए 5 को मौत की सजा और 7 को उम्रकैद सुनाई थी, जबकि एक आरोपी वाहिद शेख को बरी कर दिया गया था।
अब, करीब दो दशक बाद बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले ने इन 12 लोगों को भी निर्दोष करार दिया है, जिससे देश की न्यायिक प्रक्रिया और अभियोजन प्रणाली को लेकर बहस एक बार फिर तेज हो गई है।






