Adityapur, Saraikela : सीतारामपुर डैम में मछली पालन की नई क्रांति

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आदित्यपुर (ललित प्रेम) : गम्हरिया अंचल के सीतारामपुर जलाशय में पहली बार केज पद्धति से वैज्ञानिक मत्स्य पालन की शुरुआत हुई है। “धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान योजना” के तहत शुरू हुई इस पहल में 32 केज यूनिट्स के ज़रिए 8 लाभुकों को मछली उत्पादन से जोड़ा गया है, जिसका उद्देश्य है – स्थानीय जनजातीय समुदाय को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना और मत्स्य उत्पादन को गुणात्मक रूप से बढ़ाना।

आधुनिक तकनीक और समुदाय की सहभागिता से हुआ कार्यान्वयन

सीतारामपुर मत्स्यजीवी सहयोग समिति के माध्यम से इस योजना को अमलीजामा पहनाया गया है। प्रत्येक यूनिट में 4 फ्लोटिंग केज (7x5x5 मीटर) बनाए गए हैं, जो जीआई पाइप और मजबूत नायलॉन जाल से बने हैं। यह संरचना इतनी सशक्त है कि जलीय जीव भी इसे नुकसान नहीं पहुँचा सकते। केजों में चयनित अंगुलिकाओं को संतुलित आहार, पानी की गुणवत्ता की नियमित जांच, और वैज्ञानिक देखरेख के साथ पाला जा रहा है।

झास्कोफिश की मदद से मिली मार्केटिंग सपोर्ट

मछलियों के ट्रांसपोर्ट और मार्केटिंग को सुगम बनाने के लिए झारखंड राज्य मत्स्य निगम (झास्कोफिश) ने ऑफिस शेड, दोपहिया व तीन पहिया वाहन, आइस बॉक्स जैसे ज़रूरी संसाधन उपलब्ध कराए हैं।

विस्थापित परिवारों को मिला संबल, भविष्य में जल पर्यटन की भी उम्मीद

यह योजना उन 1300 विस्थापित परिवारों के लिए उम्मीद की नई किरण है, जिन्हें जलाशय के निर्माण के समय आजीविका से हाथ धोना पड़ा था। अब यह वैज्ञानिक मछली पालन उन्हें आर्थिक आत्मनिर्भरता, सम्मानजनक जीवन, और स्थायी रोजगार दे रहा है। इसके सफल कार्यान्वयन से न केवल मछली उत्पादन 8-10 गुना बढ़ा है, बल्कि भविष्य में यहाँ जल पर्यटन के नए अवसर भी सृजित किए जा सकते हैं।

जल संसाधनों का सतत उपयोग और तकनीकी समावेशन का आदर्श उदाहरण

इस योजना ने यह सिद्ध किया है कि सामुदायिक सहभागिता, आधुनिक तकनीक, और नीतिगत समर्थन से स्थानीय विकास और प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग संभव है।

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