Jharkhand : बाबा चले गए… पर संघर्ष की मशाल जला गए, बाबा… अब आप आराम कीजिए !

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जमशेदपुर/रांची: झारखंड की राजनीति, आंदोलन और जनभावनाओं का सबसे मजबूत स्तंभ आज ढह गया। झारखंड आंदोलन के शिल्पकार, झामुमो के संस्थापक, और आदिवासी अस्मिता की आवाज दिशोम गुरु शिबू सोरेन अब नहीं रहे। वे 81 वर्ष के थे और पिछले कई महीनों से किडनी की बीमारी और ब्रेन स्ट्रोक से पीड़ित थे।

नेता नहीं, लोकआस्था का प्रतीक थे ‘दिशोम गुरु’

नेमरा गांव की मिट्टी से निकला यह नाम आज पूरे झारखंड की आंखों में आंसू बनकर तैर रहा है। शिबू सोरेन वो नाम थे, जिन्होंने कभी अपनी राजनीति को सत्ता से नहीं, संघर्ष और न्याय से परिभाषित किया। उनकी अंतिम यात्रा के दौरान रांची से नेमरा तक जनसैलाब उमड़ पड़ा, और हर आंख नम थी।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की आंखों में पिता का नहीं, युग का विदा होना दिखा

सोमवार को सोशल मीडिया पर हेमंत सोरेन ने एक भावुक पोस्ट साझा किया –

“मैं अपने जीवन के सबसे कठिन दिनों से गुज़र रहा हूँ।
मेरे सिर से सिर्फ़ पिता का साया नहीं गया,
झारखंड की आत्मा का स्तंभ चला गया।”

उन्होंने लिखा कि उनके पिता सिर्फ ‘बाबा’ नहीं थे, बल्कि उनके विचारों की जड़ें, उनकी प्रेरणा, और झारखंड की धूप में छाया थे।

“दिशोम मतलब समाज, गुरु मतलब जो रास्ता दिखाए”

हेमंत सोरेन की भावनाओं में बसा था एक पूरा इतिहास। उन्होंने लिखा—

“बचपन में जब मैं उनसे पूछता था,
‘बाबा, आपको लोग दिशोम गुरु क्यों कहते हैं?’
वे मुस्कुराकर कहते –
‘क्योंकि बेटा, मैंने सिर्फ़ उनका दुख समझा और उनकी लड़ाई अपनी बना ली।’”

यह उपाधि उन्हें किसी संसद ने नहीं दी थी। यह झारखंड की माटी और जनता की ओर से मिला प्रेम था।

“अगर अन्याय के खिलाफ खड़ा होना अपराध है, तो मैं बार-बार दोषी बनूंगा” – शिबू सोरेन

बचपन में ही पिता को खोने वाले शिबू सोरेन ने जमींदारी शोषण के खिलाफ तलवार उठाई और फिर कभी झुके नहीं।
उन्होंने हल भी चलाया, लाठी भी चलाई, और जनता के लिए संसद तक की सीढ़ियाँ चढ़ीं।
उनकी एड़ी की दरारों में झारखंड के किसानों का दर्द था, उनकी आवाज़ में जंगल की पुकार थी।

बाबा चले गए, पर सपना हमारा वादा बन गया

हेमंत सोरेन ने वचन दिया —

“मैं झारखंड को झुकने नहीं दूंगा,
आपके नाम को मिटने नहीं दूंगा।
आपका संघर्ष अधूरा नहीं रहेगा।”

आज भले दिशोम गुरु हमारे बीच न हों, पर उनकी आत्मा झारखंड की हर पगडंडी, हर मांदर की थाप, और हर गरीब की आंखों में जिंदा है।

“झारखंड आपका ऋणी रहेगा, बाबा।
अब आप आराम कीजिए – हमने चलना सीख लिया है।”

अंतिम यात्रा बनी जनयात्रा: नेमरा की धरती रो पड़ी

उनकी अंतिम यात्रा के दौरान रामगढ़ से लेकर गोला और फिर नेमरा तक लोग सड़कों पर हाथ जोड़कर खड़े रहे। हर गांव, हर मोड़ पर पुष्पवर्षा और नारे – “वीर शिबू अमर रहें” गूंजते रहे। गांव वालों से लेकर अफसरों तक – हजारों लोग नेमरा में उनके अंतिम दर्शन के लिए एकत्र हुए।

राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई

झारखंड विधानसभा में गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। राज्यपाल संतोष गंगवार, केंद्रीय मंत्री संजय सेठ, नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी सहित तमाम नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।

मंत्री इरफान अंसारी ने ‘भारत रत्न’ की मांग करते हुए कहा“वे सही मायनों में इसके हकदार हैं। वह गरीबों की आवाज थे, एक सच्चे क्रांतिकारी।”

 

 

 

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