चांडिल (के दुर्गा राव): चांडिल वन क्षेत्र इन दिनों जंगली हाथियों के आतंक से दहला हुआ है। रसूनिया पंचायत, गुंडा, कुसपुतुल सहित कई गांवों में हाथियों का झुंड लगातार उत्पात मचा रहा है। मकान तोड़फोड़, घरों का अनाज खपाना और रातभर जागकर गुजारने की मजबूरी—ग्रामीण भय और असुरक्षा में जीने को मजबूर हैं।
17–18 हाथियों का दल नीमडीह जंगल में सक्रिय
वनपाल राणा महतो के अनुसार, वर्तमान में 17–18 हाथियों का दल नीमडीह के लाकड़ी जंगल में मौजूद है। झुंड से बिछड़े हाथी अक्सर गांवों में घुसकर तबाही मचा रहे हैं। ग्रामीणों की जान और फसल पर हर पल खतरा मंडरा रहा है।
वन विभाग के दावे और हकीकत में फर्क
वन क्षेत्र पदाधिकारी शशि प्रकाश रंजन ने बताया कि हाथियों को सुरक्षित क्षेत्र में ले जाने के लिए प्रयास जारी हैं। बंगाल से 20–22 प्रशिक्षकों को बुलाया जा रहा है, जो शुक्रवार तक पहुंचकर दलमा गज परियोजना के तहत हाथियों को स्थानांतरित करेंगे।
हालांकि, ग्रामीणों का आरोप है कि विभाग सिर्फ बयानबाज़ी कर रहा है। हाल ही में होदागोड़ा और हेवेन पहाड़धार में दो हाथियों की संदिग्ध मौत के बाद भी कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए।
ग्रामीणों की चेतावनी और मांगें
ग्रामीणों ने सरकार और विभाग को चेताया है कि यदि तुरंत ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो चांडिल में कभी भी बड़ी त्रासदी हो सकती है।
मुख्य मांगें:
- हाथियों को सुरक्षित आवास क्षेत्र में रोकने की स्थायी व्यवस्था।
- गांवों में सुरक्षा बल और गश्ती दल की तैनाती।
- प्रभावित परिवारों को मुआवज़ा और पुनर्वास।
- लापरवाह अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई।
मानव-हाथी संघर्ष को रोकना अब अनिवार्य
ग्रामीणों का कहना है कि उनकी सुरक्षा और हाथियों के अस्तित्व दोनों को बचाना सरकार की जिम्मेदारी है। समय रहते ठोस और स्थायी कदम नहीं उठाए गए तो चांडिल किसी बड़े हादसे का गवाह बन सकता है।






