Mohit Kumar
दुमकाः एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय काठीजोरिया दुमका में विश्व सिकल सेल दिवस का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य आदिवासी छात्राओं की स्क्रीनिंग करना और सिकल सेल एनीमिया बीमारी से बचाव के लिए जागरूक करना था। मुख्य अतिथि के रूप में जिला परिषद अध्यक्ष श्रीमती जोयेंस बेसरा, आईटीडीए की परियोजना निदेशक रवि जैन (भाप्रसे), सिविल सर्जन डॉ बच्चा प्रसाद सिंह ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया। सिविल सर्जन के नेतृत्व में स्वास्थ्य विभाग की टीम ने छात्राओं के रक्त का नमूना लिया और उसकी जांच की। कार्यक्रम में छात्राओं और शिक्षकों को बताया गया कि पीलापन दिखाई देना, बार-बार संक्रमण, थकान, बुखार एवं सूजन तथा कमजोरी महसूस करना, रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाना, जोड़ों में दर्द या सूजन, छाती में दर्द, सांस फूलना, पीठ व पेट में दर्द आदि सिकल सेल एनीमिया के लक्षण है।
इस रोग से ग्रसित बच्चों के लिए विशेष देखभाल जरूरी होता है। जिला परिषद अध्यक्षा मती जोयेंस बेसरा ने कहा कि आदिवासी क्षेत्र में बहुत सारी बीमारियां है, जिनका उपचार आदिवासी जड़ी-बूटी के द्वारा करते आ रहे हैं। सरकार और खासकर स्वास्थ्य विभाग रोगों की पहचान करने और उसके इलाज के लिए तेजी से काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि सिकल सेल जैसी बीमारी के बारे में लोगों को कम जानकारी है। अन्य विद्यालयों के छात्रों के बीच इस बीमारी को लेकर इसी तरह से जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया जाना चाहिए। इससे उनके अभिभावक भी जागरूक होंगे। आईटीडीए के परियोजना निदेशक रवि जैन ने कहा कि केन्द्र एवं राज्य सरकार के द्वारा सिकल सेल एनेमिया के मरीजों को चिन्हित करने और इसके बारे में जागरूकता के लिए मिशन मोड में काम किया जा रहा है। ऐसा देखा गया है कि आदिवासी बहुल क्षेत्र में यह बीमारी अपेक्षाकृत अधिक है।
चूंकि यह वंशानुगत बीमारी है इसलिए अभी इसका इलाज नहीं है। इसलिए अभी छात्र-छात्राओं का स्क्रीनिंग कर सिकल सेल एनेमिया के कैरियर को चिन्हित किया जा रहा है, क्योंकि यदि सिकल सेल एनेमिया के कैरियर पुरूष और स्त्री आपस में शादी करते हैं तो बहुत संभव है कि उनके बच्चे भी इस बीमारी से ग्रसित होंगे। सिविल सर्जन डॉ. बच्चा प्रसाद सिंह ने कहा कि आदिवासी बच्चे-बच्चियों में ज्यादातर सिकल सेल एनेमिया पाया जाता है। यदि सिकल सेल एनेमियां बच्चे में गंभीर किस्म का होता है तो जन्म के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाती है या 7-8 वर्ष से अधिक उम्र तक वह जीवित नहीं रह पाते हैं, क्योंकि खून की कमी के कारण बार-बार रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है। जो सिकल सेल एनिमिया के रेसेसिव होते हैं वह इसी तरह से जीवन जीते हैं। अभी जो ड्राइव चल रहे उसमें छात्राओं की जांच कर देखा जा रहा है, कि कौन-कौन सिकल सेल से ग्रसित हैं।
जो रिसेसिव हैं वह आनेवाले समय में सिकल रिसेसिव से शादी नहीं करें अन्यथा उनके बच्चे भी सिकल सेल एनेमिया का शिकार नहीं होंगे। यदि सिकल सेल एनेमिया की पहचान और उनके बीच विवाह नहीं हो, तो आनेवाले पांच सालों में यह बीमारी केवल कहानी का हिस्सा बनकर रह जाएगी। विद्यालय की प्रभारी प्राचार्य लेफ्टिनेंट सुमिता सिंह ने बताया कि एकलव्य विद्यालय में आदिवासी और पहाड़िया छात्राएं पढ़ती हैं। आदिवासियों में सिकल सेल बीमारी अपेक्षाकृत अधिक पायी जाती है। यह आनुवांशिक बीमारी है। इसलिए सिकल सेल बीमारी की जांच कर इससे ग्रसित छात्राओं को चिन्हित किया जा रहा है, ताकि इस वंशानुगत बीमारी को अगले पीढ़ी तक जाने से रोका जा सके। इसका एक पॉजिटव पक्ष भी है कि जिसे सिकल सेल एनेमिया होता है, उसके सेल की बनावट हसिया के तरह होती है, जिस कारण उसे मलेरिया नहीं होता। यह बहुत बड़ी पहल है सुदूर गांव से आनेवाली बच्चियों को सरकार की इस योजना का लाभ मिल रहा है।
उन्होंने बताया कि विद्यालय में 490 छात्राएं अध्ययनरत हैं, सभी की जांच की जा रही है। इस कार्यक्रम के आयोजन एवं संचालन में विद्यालय की शिक्षिका सुखमती सोनार, सुजाता झा, पुष्पलता झा, पूजा साह, संजीता मरांडी, शिक्षक अनादि गोराई, रजनीश सिंह, आकाश मंडल, जगबंधु, कल्याण गोराई, नीतिश कुमार आदि की अहम भूमिका रही। ज्ञात हो कि जुलाई 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन 2047 की शुरुआत की थी। सरकार इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने और समय रहते इसकी जांच करवाने जैसे विभिन्न पहलुओं पर काम कर रही है, साथ ही इस क्षेत्र में प्रौद्योगिकी की ताकत का भी लाभ उठा रही है।