चांडिल : पूरे देश में चैत्र नवरात्र के अवसर पर बासंती दुर्गा पूजा की धूम मची है। विभिन्न क्षेत्रों में मंदिरों में दुर्गा पूजा में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के विभिन्न हिस्सों में चुनाव प्रचार कर रहे हैं। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर मंच पर भाषण की शुरुआत में चैत्र नवरात्र का ज़िक्र कर रहे हैं, तो चलिए जानते हैं, झारखंड के सरायकेला – खरसावां जिले के इस गांव में हो रहे दुर्गा पूजा के बारे में, जो देश की आजादी के पहले से हो रही हैं।
झारखंड के सरायकेला – खरसावां जिला अंतर्गत चांडिल प्रखंड के डोबो गांव में उस समय से बासंती दुर्गा पूजा हो रही है, जब देश में अंग्रेजी हुकूमत थी। देश आजादी के पहले से ही डोबो में बड़े धूमधाम से बासंती दुर्गा पूजा होती आ रही है। यहां शारदीय नवरात्र में भी दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है, लेकिन बासंती दुर्गा पूजा देश की आजादी के पहले से हो रही है। बताया जाता है कि डोबो गांव में 1945 में पहली बार बासंती दुर्गा पूजा शुरू हुई थई। इसके बाद से लगातार प्रतिवर्ष दुर्गा पूजा हो रही है।
डोबो गांव में 1945 में जब चैत्र नवरात्र में बासंती दुर्गा पूजा शुरू हुई थी, तब कोई मंदिर नहीं था। ग्रामीण स्वयं ही मंडप निर्माण करते थे और उसमें मां दुर्गा की पूजा होती थी। ग्रामीणों द्वारा जंगल से लकड़ी की बल्ली और साल के पत्ते लाए जाते थे, जिससे मंडप बनाया जाता है। मंडप में कलश स्थापना करके पूजा की जाती थी। करीब दो दशक बाद धीरे-धीरे मंदिर निर्माण शुरू हुआ। अब भव्य मंदिर बनाया गया है, जहां शारदीय नवरात्र तथा चैत्र नवरात्र में पूजा होती हैं।
मंगलवार को महाष्टमी की पूजा हुई, जिसमें बड़ी संख्या में महिला व्रतियों ने उपस्थिति दर्ज की। यहां महिलाओं ने महाष्टमी की पूजा की। इसके बाद संधि पूजा हुई। पूजा संचालन कमिटी के सदस्य भरत महतो ने बताया कि 1945 से चली आ रही परंपरा का निर्वहन किया जाता है। उन्होंने बताया कि आसपास के क्षेत्र में शारदीय दुर्गा पूजा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन बासंती दुर्गा पूजा आसपास में नहीं होती है, केवल डोबो में ही बड़े धूमधाम से इसका आयोजन होता है। इसलिए डोबो में क्षेत्र श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। उन्होंने बताया कि शारदीय दुर्गा पूजा की तरह से ही पूजा अर्चना की जाती है और उसी तरह के भव्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस साल सप्तमी को झांकी प्रदर्शन कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। वहीं, सप्तमी को झूमर संगीत कार्यक्रम हुआ। जबकि, अष्टमी को रात्रि में ऑर्केस्ट्रा का आयोजन किया गया है, वहीं नवमी की रात रात्रि छउ नृत्य कार्यक्रम होगा। दशमी को कलश विसर्जन तथा सिंदूर खेला होगा।