बरसोल थाना क्षेत्र के सांड्रा पंचायत के लुगाहारा, पानीशोल, लोधन वाणी, दुदकुंडी व खेडुआ पंचायत के बनकटिया, दरीशोल गांवों में पिछले डेढ़ माह से हाथियों के आतंक से ग्रामीण दहशत में हैं. पहले के झुण्ड में 30-35 हाथी थे. लेकिन अब 70 से 80 हाथियों के झुंड ने अब तक सैकड़ों किसानों की फसल व बांस की खेती को नुकसान पहुंचाया है. 15 दिन पहले ग्रामीणों ने हाथियों को सिंह के जंगल में दिन भर घेरे रखा था. जिसके फलस्वरूप कुछ दिनों के लिए हाथियों का आतंक कुछ कम था . लेकिन कुछ दिनों बाद से फिर से हाथियों द्वारा लगातार उत्पात मचाने से ग्रामीण परेशान हैं. इस दौरान गुरुवार सुबह लुगाहारा गांव से सटे जंगल में 50 – 60 की संख्या में हाथियों के झुंड को ग्रामीणों ने देखा. हाथियों को भगाने के लिए लोधनवाणी, लुगाहारा, पानीशोल व दुदकुंडी गांव के ग्रामीण एकजुट हो गए. हाथियों को पश्चिम बंगाल की तरफ बड़े जंगल की ओर खदेड़ने लगे. ग्रामीणों का दल अलग-अलग दिशा में बंटा हुआ था. कुछ युवकों को जिम्मा था कि वे पेड़ों पर चढ़कर हाथियों की निगरानी करें. हाथियों की निगरानी के लिए कई युवक पेड़ पर चढ़कर हाथियों की दिशा बता रहे थे. उसके बाद पटाखा फोड़ने एवं मशाल चलाने वाले युवक हाथियों की तरफ मशाल से पत्थर आदि फेंककर उन्हें भगा रहे थे. यह सिलसिला दिन भर चलता रहा.
हाथियों के आतंक से जंगलों से सटे गांवो के लोगों का हर दिन आतंक के साये में कट रहा है आलम ये है की चारों तरफ से जंगल से घिरा हुआ लुगाहारा गांव बंधक बन गया है. लुगाहारा के ग्रामीणों में बलराम महतो, हरीश महतो, दुलाल महतो, कुमेत महतो, राजू महतो, राधिका महतो, शाकुंतला महतो, गीता महतो, जयंती महतो, उपेन महतो, परितोष महतो, कान्हू माझी, सस्ती चंरण महतो, जोगेंद्र महतो, उपेंद्र माझी, सुदीप मांझी आदि ने बताया कि हमारे गांव के चारों तरफ जंगल है. इसलिए चारों तरफ हाथियों का बसेरा है गांव से नहीं जाने आने में भी डर लगता है. हमारे गांव में हाथियों ने बांस की खेती और तील खेती को रौंदकर बर्बाद कर दिया है. ग्रामीणों ने यह भी बताया कि इन दिनों एक बांस की कीमत 100 से 120 रूपया है. जब धान की खेती नहीं हो पाती उस समय बांस को बेचकर ग्रामीण अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं. लेकिन अब बांस और धान की फसल की बर्बादी के कारण परिवार का पेट पालने की समस्या आ खड़ी हुई है .
ग्रामीणों ने बताया की वन विभाग से हाथियों को भगाने के लिए 3 से 4 लोग आते हैं. लेकिन हाथियों की संख्या बहुत ज्यादा होने कारण उन्हें कोई ख़ास सफलता नहीं मिल पाती है . और उनकी ओर से इस दिशा में कोई दिलचस्पी भी नहीं ली जा रही है . जिसके कारण समस्या जस की तस है .