Mohit Kumar
दुमका : राज्यकीय हिजला मेला शांतिपूर्ण संपन्न हो, इसे लेकर आदिवासी समुदाय ने आज पूजा-अर्चना की। बता दें कि राजकीय हिजला मेला महोत्सव 134 वर्ष पुराना है। मेरा शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो, इसे लेकर आज पूजा-अर्चना की गई।
यह मेला 16 फरवरी से शुरू हो रहा है, जो आगामी 23 फरवरी तक दुमका के मयूराक्षी नदी तट पर आयोजित होगा। राजकीय जनजातीय हिजला मेला महोत्सव 2024 शांतिपूर्ण रूप से संपन्न हो, इसे लेकर मेला परिसर स्थित आदिवासियों के पूजा स्थल दिसोम मारंग बुरु थान में आज पूजा-अर्चना की गई। दिसोम मारंग बुरु संताली आरीचली आर लेगचर अखड़ा के बैनर तले हिजला, धतिकबोना, हड़वाडीह, बुरुडीह आदि गांव के संताल आदिवासियों ने नायकी पुजारी राजेन्द्र बास्की की अगुवाई में पूजा अर्चना की।
नायकी ने कहा कि मेला शांतिपूर्ण हो उसके लिए आज सभी ग्रामीणों ने दिसोम मारंग बुरु थान में पूजा-अर्चना की। हिजला गांव के माझी बाबा ग्राम प्रधान सह उद्घाटनकर्ता सुनीलाल हांसदा ने कहा कि अगर अंग्रेज सरकार कई सौ वर्ष पहले इस पूज्य पेड़ सारजोम (सखुवा) को नहीं काटती तो शायद यहां मेला शुरू ही नहीं हुआ होता।
दिसोम मंझी थान के पुजारी सीताराम सोरेन ने बताया कि कई सौ वर्ष पहले यहां संताल आदिवासी का पूज्य पेड़ सारजोम सखुआ हुआ करता था। यहां आदिवासी पूजा अर्चना करते थे और जो गांवों में फैसला नही हो पाता था उसकी सुनवाई यहां आदिवासी किया करते थे। इसे मोड़े पिंडह बैसी पंचायती भी कहा जाता था। आदिवासियों के अधिक संख्या में यहां भीड़ जमा होने के कारण अंग्रेज सरकार को विद्रोह का डर सताने लग था। इसके बाद अंग्रेज सरकार ने पता लगाया कि आखिर यहां आदिवासी कैसे जमा होते हैं? पता लगा कि यही सारजोम सखुवा पेड़ ही इसका बहुत बड़ा कारण है।
आदिवासी यहां जमा न हों और विद्रोह न हो, इसलिए तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने उस पूज्य पेड़ को कटवा दिया। जिससे देवता नाराज हो गए और और इस इलाके में बहुत अकाल-सुखाड़ पड़ा, जिससे आदिवासी ग्रामीण भड़कने लगे। इन इलाकों में भूखमरी की स्थिति होने लगी। इससे अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन की आग धधकने लगी। इसी आंदोलन को दबाने के लिए उस समय अंग्रेज सरकार ने यहां मेला लगवाने की परंपरा शुरू की। जिसे HIS LAW (अपना कानून) कहा गया। कालांतर में यही हिजला के नाम से प्रसिद्ध हुआ। वहीं कई सौ वर्ष पूर्व पूज्य पेड़ सारजोम सखुवा पेड़ का अवशेष है, जो फासिल्स में तब्दील हो गया है। जिसे आदिवासी दिसोम मरांग बुरु थान के नाम से जानते है और पूजा करते हैं। इस मौके पर सैकड़ों की संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग उपस्थित थे।