- पुलिस टीम के साथ ही सर्जरी विभाग की केबिन में बंद रहा सेनापति
- किसी को पता न चले, सर्जरी विभाग के बोर्ड पर चिपकवा दिया पेपर
- अस्पताल में रहकर कमर की पुरानी बीमारी का इलाज करवाता रहा शक्तिपदो सेनापति
जमशेदपुर/सरायकेला : शायद पहले भी ऐसा हुआ हो, लेकिन अगर ऐसा है तो वह भी कुछ इसी तरह का मामला होगा। उसमें भी कुछ खेल हुआ होगा, अन्यथा एक मारपीट की आरोपी, जिसपर पुलिस वाले के साथ मारपीट करने, सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाने, छिनतई करने के साथ ही पत्रकारों के साथ बदसलूकी करने का आरोप हो, इसे पूरे साक्ष्य हों, इसके बावजूद आरोपी को जेल भेजने का प्रयास न कर सरकारी अस्पताल में वीआईपी व्यवस्था में रखना और पुलिसिया व्यवस्था में ढील देना, ताकि वह आराम से छूट जाए, और ऐसा ही हो, तो इसे क्या कहेंगे। हम बात कर रहे हैं रामकृष्णा फोर्जिंग के सीपीओ और कोर टीम के मेंबर शक्तिपदो सेनापति की। पुलिस की लापरवाही और सही तरीके से साक्ष्य न प्रस्तुत करने के कारण कोर्ट ने आज उसे जमानत दे दी।
कई बार कोर्ट ने उसकी जमानत अर्जी पर सुनवाई इसलिए नहीं की, क्योंकि कहा जा रहा था कि वह रिमांड पर नहीं है, इसलिए बेल नहीं हो सकता है। इधर आज बचाव पक्ष के वकील ने पुलिस के आरोप को गलत बताया। कोर्ट ने सेनापति का स्टेटस मांगा तो बचाव पक्ष के साथ अभियोजन की ओर से सरकारी वकील ने लिखकर दिया कि शक्तिपदो पुलिस कस्टडी में है और उसका इलाज चल रहा है। इस आधार पर सरायकेला के प्रधान जिला और सत्र न्यायाधीश विजय कुमार की कोर्ट से उसे जमानत दे दी गई।
गिरफ्तारी के बाद उसने जो प्रपंच रचा, उसके बाद से वह जेल न जाकर सीधे अस्पताल पहुंच गया। इस कार्य में कइयों ने उसकी मदद की। अस्पताल पहुंचे ही सीधे आईसीयू, फिर वार्ड और वहां से गुप्त केबिन में उसे सुरक्षित रख दिया गया। उसे किस केबिन में रखा गया था, आप इसका पता भी नहीं लगा सकते थे, लेकिन अब तो उसे जमानत मिल गई। अस्पताल के बंद केबिन से जब उसने पूरा खेल कर दिया, तो आप समझ सकते हैं कि बाहर रहकर वह मामले को क्या मोड़ दे सकता है।
अब आते हैं असल मुद्दे पर गिरफ्तारी के बाद पिछले 12 दिनों से एमजीएम अस्पताल में इलाजरत रामकृष्णा फोर्जिंग के सीपीओ शक्तिपदो सेनापति उर्फ शक्ति प्रसाद सेनापति पूरी तरह से वीआईपी व्यवस्था में था। जिस सर्जरी विभाग के केबिन में उसे रखा गया है, वहां तक आप पहुंच भी नहीं सकेंगे।
अस्पताल में आने वाले लोगों की सहुलियत के लिए हर जगह विभाग का नाम लिखा हुआ, ताकि लोगों को पता चल सके कि कौन सा विभाग कहां है। शक्तिपदो जहां इलाजरत है, वहां बाहर सर्जरी विभाग लिखा हुआ है। लेकिन आप अगर वहां जाएंगे तो पता नहीं चलेगा कि आप कहां पहुंच गए हैं, क्योंकि जहां सर्जरी विभाग का बोर्ड लगा है, उसपर पेपर चिपका दिया गया है, ताकि किसी को पता न चले कि वह कहां है। ऐसे में आप ढूंढ़ते रह जाएंगे।
अब यहां एक अहम सवाल यह उठता है कि आखिर किसके सहयोग से शक्तिपदो ने सरकारी अस्पताल के बोर्ड को ढंकवा दिया। बिना अस्पताल प्रबंधन की मिलीभगत से तो ऐसा हो नहीं सकता। लेकिन अगर अस्पताल प्रबंधन की जानकारी के बिना ऐसा किया गया है तो यह भी एक गंभीर मामला है और इस मामले में अस्पताल प्रबंधन द्वारा कार्रवाई की जानी चाहिए। देखने वाली बात यह होगी कि अस्पताल प्रबंध मामले को क्या मोड़ देता है और इसमें उसकी कैसी सफाई सामने आती है।
इतना ही नहीं जिस पुलिस की अभिरक्षा में वह इलाजरत है, वह पुलिस कहां है, इसकी भी जानकारी किसी को नहीं। कहा जा रहा है कि पुलिस टीम उसके साथ ही उसकी केबिन में ही बंद है।
अब बात करते हैं उसकी बीमारी की, तो वह डॉ. बलराम झा के अधीन इलाजरत था। मामले में डॉ. झा से कई बार संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन उन्होंने एक बार भी कॉल रिसीव नहीं किया।
पता चला कि उसे हड्डी की परेशानी है और डॉ. जीएस बड़ाइक भी उसका इलाज कर रहे हैं। इसके बाद जब डॉ. बड़ाइक से संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि उसके पैर में दर्द है और कमर की प्रॉब्लम है। उसकी एमआरआई कराई गई तो पता चला कि कमर की हड्डी थोड़ी दब गई है और नर्व की प्रॉब्लम है। पूछे जाने पर डॉ. बड़ाईक ने कहा कि यह बीमारी अचानक नहीं होती, लंबे समय से धीरे-धीरे परेशानी बढ़ती जाती है।
ऐसे में कोई भी इस बात को आसानी से समझ सकता है कि शक्तिपदो को कोई परेशानी नहीं थी। जेल जाने से बचने के लिए उसने सारा प्रपंच रचा और आराम से सरकारी अस्पताल के बंद कमरे में अपनी पुरानी बीमारी का इलाज कराता रहा। जानकारों का कहना है कि गिरफ्तारी के दौरान भागदौड़ में बीपी बढ़ जाती है, टेंशन हो जाता है। अगर ऐसा है तो पहले दिन आईसीयू में रखने के बाद पुलिस ने उसे वार्ड में शिफ्ट कर दिया था। यानि उसकी स्थिति नॉर्मल हो गई थी। बाद में वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया, ताकि वह आराम से वहां समय काटता रहे।
इस पूरे घटनाक्रम से एक बात तो पूरी तरह साफ है कि अगर आप ऊंचे ओहदे पर हैं, आपके पास पैसे हैं तो आप कुछ भी कर सकते हैं, चाहे आप पुलिस वाले का कॉलर ही क्यों न पकड़ें या सरकारी काम में बाधा ही क्यों न डालें। पत्रकारों की बात तो छोड़ ही देते हैं, क्योंकि कहने को यह चौथा स्तंभ है, लेकिन जब जो चाहता है, जैसे चाहता है, इस स्तंभ को उसकी औकात बता जाता है।