सुकिंदा : टाटा स्टील माइनिंग की सुकिंदा क्रोमाइट माइन ने विभिन्न प्रजातियों के देशी व्यंजनों से लोगों को रूबरू कराने के लिए यहां एक दिवसीय प्रजातीय खाद्योत्सव का आयोजन किया। इसमें भूले-बिसरे व्यंजनों को लकड़ी की आग पर मिट्टी के बर्तनों में पकाने से लेकर उन्हें देशी पौधों की पत्तियों पर परोसने तक अद्भुत इंतजाम रहा, जो खाद्य प्रेमियों के लिए शानदार अनुभव था। टाटा स्टील फाउंडेशन द्वारा टाटा स्टील माइनिंग की सीएसआर टीम के साथ मिलकर आयोजित किए गए इस खाद्योत्सव में 30 घरेलू रसोइयों ने लजीज़ स्वदेशी कृषि-वन व्यंजनों और ओडिशा के स्थानीय व्यंजनों को बनाया, जिनका खाद्य प्रेमियों ने चटखारे लेकर आनंद लिया। यह खाद्योत्सव स्थानीय पारंपरिक कृषि-वन खाना पकाने की प्रथाओं और व्यंजनों को बढ़ावा देने और संरक्षित करने का एक प्रयास था।
इस कार्यक्रम में टाटा स्टील माइनिंग के मैनेजिंग डाइरेक्ट पंकज सतीजा, टाटा स्टील ओड़िशा के हेड, सीएसआर डॉ. अंबिका प्रसाद नंदा के अलावा संबंधित विशेषज्ञों जैसे डॉ. परमानंद पटेल, पद्मश्री दैत्री नायक, देबाशीष प्रधान के साथ स्थानीय गांवों के विभिन्न प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।
टाटा स्टील माइनिंग के प्रबंध निदेशक पंकज सतीजा ने कहा कि आज की जीवनशैली में देशी कृषि-वन खाद्यों से जो पोषण मिलता है, उससे वह और भी अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। टाटा स्टील माइनिंग ने इस कार्यक्रम के माध्यम से ओडिशा के समुदायों द्वारा सदियों से संजोए गए प्रचलित समृद्ध पारंपरिक खाद्य विविधता को सबके सामने लाने का प्रयास किया है। इस आयोजन को सफल बनाने के लिए उन्होंने सभी प्रतिभागियों का आभार प्रकट किया।
घरेलू रसोइयों ने अपने समुदायों में प्रचलित कृषि-वन खाद्य तकनीकों को जानने के लिए एकसाथ कदम बढ़ाया। कार्यशाला के दौरान कई स्वादिष्ट व्यंजन तैयार किए गए जिनमें ब्लैक कारपेंटर चींटी की चटनी, बांस का अचार और देशी चिकन खिचड़ी जैसे दुर्लभ खाद्य शामिल थे। दिन भर चलने वाले इस कार्यक्रम के बाद विभिन्न स्थानीय कृषि-वन नृत्यों जैसे घूमरा आदि का आयोजन किया गया।
इस थाली में “पीठा” जैसे पारम्परिक व्यंजन थे और जड़, कंद और उन कई अन्य सामग्रियों का उपयोग करके खाद्य सामग्रियों को तैयार किया गया था, जिनका वन क्षेत्रों में रहने वाले स्थानीय समुदाय सदियों से उपयोग कर रहे हैं। इस उत्सव में 30 से अधिक स्थानीय व्यंजन तैयार किए गए। इसमें कृषि-वन व्यंजनों पर काम करने वाले रसोइये (शेफ) भी मौजूद थे जिन्होंने पाक सीमाओं का विस्तार करने के साथ ही यह भी सुनिश्चित किया कि यह युवाओं को भी पसंद आए। सुंदरगढ़, मयूरभंज, बालासोर, जाजपुर और क्योंझर के आदिवासी समुदायों के इन घरेलू रसोइयों ने विभिन्न स्वादों को परोसा।
सुंदरगढ़ की अमृता एक्का ने अपने यहां प्रचलित मुख्य सामग्री, मंडिया या बाजरा का उपयोग करके मिश्रण व्यंजनों को बनाने की कोशिश की। वह उरांव जनजाति से ताल्लुक रखने वाली हैं और उन्हें खाना बनाना बहुत पसंद है। वे कई तरह के व्यंजन आजमाती रहती हैं। इस संबंध में अमृता कहती हैं कि वे मंडिया का उपयोग करके रसगुल्ला और ढोकला बनाने की कोशिश कर रही हैं और उन्हें यकीन है कि लोग इसे पसंद करेंगे।
इस महोत्सव का उद्देश्य लोगों को वन क्षेत्रों में और उसके आसपास रहने वाले स्वदेशी समुदायों की भोजन की आदतों के बारे में बताना है। इसमें खाद्यों को उगाने के सस्टेनेबल तरीकों तथा पारिस्थितिकी भूमि, पौधों, जानवरों और जंगलों के साथ इसके संबंधों पर प्रकाश डाला गया है। यह महोत्सव कई आगंतुकों के लिए एक आश्चर्य था, जिन्हें पता चला कि राज्य की जनजातियों के सैकड़ों खाद्य पदार्थ इतने लजीज हैं।