जैक दसवीं की बोर्ड का रिजल्ट आ गया है और इसी के साथ इस परीक्षा में टॉप करने वाले बच्चों की चर्चा भी जोरो पर है. हर कोई अपने बच्चे की उपलब्धि का बखान कर रहा है. ये सभी समाज की मुख्य धारा से जुड़े लोग हैं . मगर समाज का एक ऐसा वर्ग भी है जो मुख्य धारा के बीच की पतली लकीर के उस पार रहता है. जिन्हें गुलगुलिया कहा जाता है. आम तौर पर इनका कोई स्थाई घर नहीं होता और ये दैनिक मजदूरी और अन्य काम को करके अपना जीवन यापन करते हैं. मगर इस बार चाकुलिया क्षेत्र में गुलगुलिया जाति की एक लड़की ने पहली बार दसवीं बोर्ड की परीक्षा 66.20 % अंको के साथ प्रथम श्रेणी से पास कर शिक्षा के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाया है. इस लड़की का नाम है दामिनी सबर. दामिनी अपने कुनबे में पहली मैट्रिक पास करने वाली लड़की बनी है. उसके पिता की पहले ही मृत्यु हो चुकी है. माँ मां जसिन सबर के पास कोई स्थाई काम नहीं है और किसी तरह से इधर -उधर काम करके किसी तरह गुजारा चल जाता है मगर इसके बाद भी दामिनी की मेहनत और कुछ अच्छा कर गुजरने की लगन ने उसे इस मुकाम तक पहुँचाया. उसने केदारनाथ झुनझुनवाला उच्च विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा दी थी. जिसमे उसे हिंदी में 81, अंग्रेजी में 63, गणित में 60, विज्ञान में 65 और संस्कृत में 62 अंक प्राप्त हुए हैं. अब आगे की पढाई के लिए उसके सामने एक नयी चुनौती है. उसकी मां जसिन सबर ने कहा कि वह अपनी बेटी की पढाई को छुटने नहीं देगी और चाहे कितनी भी कठिनाई हो वो उसे पढ़ाएगी. इसके लिए कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय में दाखिले का आवेदन देगी. उसके बाद स्थानीय जनप्रतिनिधियों से भी संपर्क करेगी.
चाकुलिया क्षेत्र में गुलगुलिया जनजाति के लोगों की अच्छी तादाद है. ये लोग खुद को सबर बताते हैं और अपने नाम के आगे सबर टाईटल भी लगते हैं. अभी इनलोगों का ठिकाना प्रखंड कार्यालय के सामने खाली पड़ी जमीन है जिसमे ये लोग अस्थाई झोपडी बना कर निवास करते हैं. सरकार की ओर से इन्हें किसी भी प्रकार की कोई सुविधा नहीं मिलती है. कचरा चुनकर, दैनिक मजदूरी जैसे काम करके ये लोग अपना जीवन-यापन करते हैं. पढाई – लिखी से इनका दूर -दूर तक कोई लेना देना नहीं है. ऐसे में दामिनी सबर इस समाज के लिए एक मिसाल बन गयी है. खाली समय में वो बाकी बच्चों को पढ़ाती भी है. अब देखने वाली बात ये होगी की दामिनी के सपनो की उड़ान कहाँ तक सफल हो पाती है.