आज से कई वर्षों पहले, हमारा देश स्वतंत्र हुआ था। आज से लगभग 76 वर्ष पहले, हमने अपने आप को अपने आदर्शों की दिशा में मुक्ति प्राप्त कराई थी। लेकिन क्या आज हम वास्तव में स्वतंत्र हैं?
इसी कड़ी में जमशेदपुर के लेखक अंशुमन भगत के विचार महत्वपूर्ण हैं। वे सुनहरे दौर में हमें यह याद दिलाते हैं कि आज भी हम अपने आदर्शों की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध रहें। उनके विचार हमें यह सिखाते हैं कि हमें अपने देश को न केवल भौतिक रूप से, बल्कि आधुनिकता की दिशा में भी मजबूत बनाने की आवश्यकता है।
भारतीय समाज को स्वतंत्रता के बाद भी अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जो हमारे राष्ट्रीय उद्देश्यों की दिशा में हमें आगे बढ़ने से रोक रहे हैं। आज भी, हमारे देश को अपनी आत्मनिर्भरता की दिशा में अग्रसर करने में कई कदम पीछे दिखते हैं। हम देखते हैं कि कुछ क्षेत्रों में हम उन्नति के पथ पर हैं, जबकि कुछ क्षेत्रों में हम अभी भी पिछड़े हुए हैं। हालांकि एक पक्ष में हम ने खुद को बेहतर बनाने की दिशा में कई कदम आगे बढ़ाए हैं, वहीं दूसरे पक्ष में हमें अपनी पहचान और महत्वपूर्णता को दुनिया के सामने प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। इस मानवीय दिशा में लेखक अंशुमन भगत के विचार हमें मार्गदर्शन करते हैं।
कानून और समाज की आवस्था विकास के प्रमुख प्रतिकूल घटक हो सकते हैं, लेकिन अंशुमन भगत की सोच में, यही चुनौतियों का समाधान भी है। वे समाज में न्याय की प्राथमिकता को महत्वपूर्ण मानते हैं और इसे बढ़ावा देने के लिए अपने विचारों को प्रस्तुत करते हैं। उनके अनुसार, न्याय का मार्ग हमें समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ने का संकेत देता है, तथा समाज के विकास में भागीदारी की भावना को बढ़ावा देता है।
भारतीय विकास के नए दिशानिर्देश ‘मेड इन इंडिया’ के रूप में प्रस्तुत हो रहे हैं, और इस दिशा में खुद का योगदान देना भी महत्वपूर्ण है। अंशुमन भगत के विचार में, हमें स्वदेशी उत्पादों की प्रतिष्ठा और विश्वस्तता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, जो हमें खुद को स्वतंत्र और सशक्त महसूस करने में मदद कर सकते हैं।
अंशुमन भगत के विचार एक महत्वपूर्ण संदेश देते हैं – हमें खुद की महत्वपूर्णता को समझने के बाद ही हम अपने व्यक्तिगत और सामाजिक विकास की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। उनके विचारों से हमें यह सिखने को मिलता है कि हमें अपनी सीमाओं को पार करके, खुद को बेहतर बनाने के लिए तत्पर रहना चाहिए।