पांचों प्रदेश से इलेक्शन का परिणाम आते ही फगुआ का रंग पूरे देश में चढ़ने लगा है।
ट्रेनों की सीट तो फुल हो ही गई है बसों में भी जगह बमुश्किल मिल रही है। कई लोग तो प्राइवेट गाड़ियों से अपने घर जाना पसंद कर रहे है।
ये भागम भाग आपको इसलिए देखने को मिल रहा है क्योंकि हमारे देश में जितने भी त्योहार मनाये जाते हैं उन सब में होली का त्योहार (Holi Festival) काफी महत्वपूर्ण है और इसके पीछे पौराणिक और सच्ची कथा छिपी हुयी है।
होलिका दहन (Holika Dahan) और होली में रंगों के साथ खेलने के पीछे भी बहुत सी कहानियां हैं। परंतु सभी इस त्योहार को मुहूर्त के अनुसार मानने और इसके बारे में जानने को उत्सुक रहते है।
तो जानिए इस साल के होलिका होली और होलिका दहन के मुहूर्त के संग क्यों, कब और कैसे मनाते हैं होली…………………
मुहूर्त और तारीख (Holika Dahan Muhurt and Date)
होलिका दहन गुरूवार, मार्च 17, 2022 को
होलिका दहन मुहूर्त – 09:06 PM से 10:16 PM
अवधि – 1 घंटा 10 मिनट
रंगवाली होली शुक्रवार, मार्च 18, 2022 को
भद्रा पूंछ – 09:06 PM से 10:16 PM
भद्रा मुख – 10:16 PM से 12:13 AM, मार्च 18
प्रदोष के दौरान होलिका दहन भद्रा के साथ
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ – मार्च 17, 2022 को 01:29 PM
पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 18, 2022 को 12:47 PM
क्यों करते हैं होलिका दहन (Holika Dahan)
ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है।
होली कब और क्यों मनाई जाती है।
होली का त्योहार फागुन महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। होली का त्योहार हिंदू चंद्र कैलेंडर माह के अंतिम पूर्णिमा के दिन होता है। यह दो दिवसीय कार्यक्रम है। पहले दिन, परिवार एक पवित्र अलाव के लिए एकत्र होते हैं। दूसरे दिन, रंगों का त्योहार मनाया जाता है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार होली का त्योहार, हिरण्यकश्यप की कहानी जुड़ी है। हालांकि यह पारंपरिक रूप से एक हिंदू त्योहार है। होली दुनिया भर में मनाई जाती है।
होली में रंग का इतिहास
यह माना जाता है कि भगवान कृष्ण रंगों के साथ होली मनाते थे। वह वृंदावन और गोकुल में अपने दोस्तों के साथ होली खेलते थे। पहले, होली के रंगों को ’टेसू’ या ’पलाश’ के पेड़ से बनाया जाता था और गुलाल के रूप में जाना जाता था। तब के रंग त्वचा के लिए बहुत अच्छे हुआ करते थे। क्योंकि इसमें रसायन का इस्तेमाल नहीं किया जाता था।
समय के साथ रंगों की परिभाषा बदल गई है। आज लोग रसायनों से बने रंगों का उपयोग लाने लगे हैं। जो खराब हैं और यही कारण है कि बहुत से लोग इस त्योहार को मनाने से बचते हैं। हमें इस पुराने त्योहार का आनंद उत्सव की सच्ची भावना के साथ मनाना चाहिए।
देश में वृंदावन की होली काफी प्रचलित है, जहां बहुत धूम धाम से होली मनायी जाती है।
आज के युग की होली
आज के समय में होली का त्योहार बच्चों के लिए खास हो चुका है। इस घड़ी का इंतजार इन्हे बेसब्री से होता है। क्योंकि नई नई पिचकारी खरीदना, रंग घोलना, अपने दोस्तों को रंग चपोतना, आते जाते राहगीरों को पिचकारी से रंग लगाना और कहना बुरा ना मानो होली है। महिलाएं अच्छे-अच्छे पकवान बनाने और घर की साज सजावट में बिजी, दूसरी तरफ बच्चों की खुशियों से दूरी बनाते हुए कुछ लोग मदिरे का सेवन करते हैं, हालाकि ये पहले नहीं था अब तो हर कारण इसका उपयोग होने लगा है। जबकि किसी का परिवार नहीं चाहता कि घर का कोई आदमी होली की छुट्टी नशे में बिताए।
अपना कैसे रखें खयाल
रासायनिक रंगों से कोई अछूता नहीं रहा है और होली में इस्तेमाल किये जाने वाले रंगों में मौजूद रसायन त्वचा में जलन, चकत्ते, एक्जीमा, रूखापन, खुजली, त्वचा के रंग का बदलना, लाल दाने, फुन्सी निकल आना आदि समस्याओं से जूझना पड़ सकता है। बेहतर है नेचुरल , हर्बल उपयोग में लाए। और रंग खेलने से पहले अपने त्वचा पर तेल और कपड़े से ज्यादा से ज्यादा अंगो को ढक ले।
हर रंग कुछ कहता है
लाल रंग
यह ऊर्जा, उत्साह, महत्वाकांक्षा, उग्रता, उत्साह और पराक्रम का प्रतीक है। इससे इंसान में जोश भरता है।
पीला
यह रंग को आरोग्य, शांति और एश्वर्य का प्रतीक माना जाता है। इस रंग का प्रभाव मानव मस्तिष्क पर पड़ता है। यह देवी-देवताओं का प्रिय रंग है।
हरा
यह रंग , हरियाली, शीतलता, ताजगी, और सकारात्मकता का होता है। इस रंग से मन की चंचलता दूर होती है और इस रंग को सुकून पहुंचाने वाला माना जाता है।
नीले
यह रंग को कोमलता और स्नेह के साथ वीरता, पौरुषता का प्रतीक माना जाता है।
नारंगी
यह रंग खुशमिजाजी और सामाजिक सरोकार का प्रतीक है। इस रंग के प्रयोग से व्यक्ति ज्ञानवान और विचारवान होता है। इस रंग से मानसिक शक्ति मजबूत होती है और सामाजिक संबंध काफी मजबूत होते है। प्रिय लोगों को लगाना पसंद करते हैं।
आपने अपनी होली कैसे मनाई, उसकी सेल्फी हमें जरूर भेजें।
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