Minister and Mla’s Salary and tax : एक बार आप विधायक बने नहीं कि आप पेंशन के हकदार हो गए। वह भी सामान्य पेंशन नहीं, हर टर्म में जीतने के साथ ही इस पेंशन में बढ़ोतरी होती जाती है। इतना ही नहीं सरकारें जब अपनी जेब भरने के लिए वेतन और भत्तों में बढ़ोतरी करती हैं तो पेंशन का भी खयाल रखा जाता है, ताकि विरोध के सुर न उठें। आखिर हो भी क्यों न सभी तो एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं (कुछ अपवाद को छोड़कर)। यह तो हुई आम बात, जिसके बारे में जानते तो सभी हैं, लेकिन बोलता कोई नहीं। यहां हम वह बात बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में शायद आपको न पता हो।
इस खबर की शुरुआत हम इस सवाल से करते हैं….
क्या आपकी आय इनकम टैक्स के दायरे में आती है?
जवाब अगर ना है तो कोई बात नहीं…
लेकिन आपका जवाब अगर हां है, तो हमारा दूसरा सवाल है….
क्या आप अपना इनकम टैक्स खुद भरते हैं या आपकी कंपनी या सरकार?
आप सोच रहे होंगे कि यह कैसा बेतुका सवाल है, कमाई मेरी है, तो टैक्स भी तो मुझे ही भरना होगा, भला कोई दूसरा मेरी कमाई का टैक्स क्यों भरेगा?
अगर आप ऐसा सोच रहे हैं तो आपका सोचना गलत है, क्योंकि हमारे देश में कई ऐसे राज्य हैं, जहां की सरकारें अपना और अपने मंत्रियों और विधायकों का टैक्स सरकारी खजाने से भर रही हैं……
यह आश्चर्य वाली बात तो जरूर है, लेकिन है 100 फीसदी सच। देश में ऐसे 7 राज्य हैं और इनमें से ही एक है झारखंड….
झारखंड सरकार होल्डिंग टैक्स में मनमाना वृद्धि करती है, पेट्रोल की कीमतें कम करने के नाम पर लॉलीपॉप थमा देती है, केंद्र टैक्स कम करता है तो भी उसका विरोध होता है, यानी हम टैक्स कम नहीं करेंगे……
लगातार कहा जाता है कि पहले की सरकार ने खजाना खाली कर दिया था, लेकिन उसे भरने के लिए जनता पर बोझ तो डालेंगे, लेकिन सालाना पानी में जा रहे 5 करोड़ रुपयों को पानी में ही जाने देंगे, क्योंकि इससे मंत्रियों और विधायकों का फायदा हो रहा है…
अब आते हैं असल मुद्दे पर। मुद्दा यह है कि आप जन प्रतिनिधि हैं, कहा जाता है कि आप जनता की सेवा करते हैं, इसके एवज में जनता द्वारा चुकाए जाने वाले टैक्स से ही किसी न किसी रूप में आपको वेतन और भत्ते मिलते हैं। यानी आपने एक महीने जो भी किया हो आपको निर्धारित वेतन और भत्ते मिल जाते हैं। ऐसे में अगर आपकी आय इनकम टैक्स के दायरे में आती है तो टैक्स तो आपको ही भरना चाहिए, लेकिन आपका टैक्स सरकार भरती है यानी आपको जो आय हुई वह राशि आपको सरकारी खजाने से ही मिलती है और उसी सरकारी खजाने से आपकी आय पर टैक्स भी भरा जाता है।
आखिर जनता के साथ ऐसी नाइंसाफी क्यों?
इस सवाल का जवाब कोई नहीं दे रहा है। जनता को तो इसके बारे में पता ही नहीं है और मंत्री और विधायक भला इस मुद्दे पर क्यों बोलें। इससे उनको कहां नुकसान हो रहा है…..
यहां यह लाइन सटीक बैठती है…इसमें तेरा (आम जनता) घाटा….मेरा (मंत्री-विधायक) कुछ नहीं जाता
अब आपको बताते हैं कि वह रकम, जिसकी हर साल चपत लग रही है। झारखंड सरकार मंत्रियों औऱ विधायकों की आय पर हर साल जो टैक्स भरती है वह रकम है करीब 5 करोड़ रूपए। यह राशि वर्ष 2015 से सरकारी खजाने से निकल रही है यानि अब तक जनता की गाढ़ी कमाई के करीब 35 करोड़ रूपए पानी में बह गए। इन रूपयों से विकास के कई कार्य हो सकते थे।
सरकार पेट्रोल और डीजल पर सब्सिडी दे सकती थी (लेकिन नहीं दिया, क्योंकि इसमें उन्हें अपना फायदा नजर नहीं आता)
जिस होल्डिंग टैक्स में अप्रत्याशित वृद्धि के बाद हंगामा बरपा है, शायद उसकी नौबत नहीं आती
लेकिन इससे किसी को कोई सरोकार नहीं है, क्योंकि सभी मजे मार रहे हैं। वेतन और भत्तों के नाम पर लाखों रूपए सरकारी खजाने से ले रहे हैं और समय-समय पर इसमें मनमानी वृद्धि भी कर रहे हैं, साथ ही सोने पर सुहागा यह कि उन पैसों में से इनकम टैक्स भी नहीं देना पड़ रहा, क्योंकि उनकी कमाई पर टैक्स भी सरकारी ही जनता के पैसों से भर रही है.
टाइम्स ऑफ इंडिया में इससे संबंधित खबर पब्लिश होने के बाद सबसे पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने पहल की और आदेश निकाल दिया कि उस कानून को वापस लिया जाएगा और अब सीएम के साथ ही सभी मंत्री अपना टैक्स खुद भरेंगे। यानी सीएम योगी ने वर्ष 2019 में ही मंत्रियों पर होने वाली इस मेहरबानी पर रोक लगा दी। आपको शायद आश्चर्य होगा कि यह कानून 1981 में ही बना था।
इसी तरह वर्ष 2022 में हिमाचल प्रदेश ने भी इस छूट पर रोक लगा दी।
इन राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्री जनता के पैसों से कर रहे ऐश
झारखंड – झारखंड में वर्ष 2015 से ही विधायकों के वेतन पर सरकारी खजाने से इनकम टैक्स भरा जा रहा है। इसपर हर साल करीब 5 करोड़ रुपए खर्च होते हैं।
हरियाणा – यहां भी मुख्यमंत्री के साथ ही मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष का इनकम टैक्स सरकार भरती है।
मध्य प्रदेश – यहां भी माननीयों का टैक्स सरकारी खजाने से ही भरा जाता है।
छत्तीसगढ़ – यहां यह मेहरबानी वर्ष 2000 से हो रहा है और सभी विधायकों का टैक्स राज्य सरकार ही भरती है।
आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पंजाब – यहां भी राज्य सरकार ही सरकारी खजाने से माननीयों का टैक्स भरती हैं।
इन राज्यों के विधायकों को कितना मिलता है वेतन (भत्ता सहित)
राज्य वेतन
झारखंड 1.11 लाख
हरियाणा 1.15 लाख
पंजाब 1.14 लाख
छत्तीसगढ़ 1.10 लाख
आंध्र प्रदेश 1.30 लाख
तेलंगाना 2.50 लाख
मध्य प्रदेश 1.10 लाख
देश के राज्यों में विधायकों के वेतन की बात करें तो सबसे ज्यादा 2.50 लाख रुपए महीना तेलंगाना और सबसे कम 34 हजार रुपए वेतन त्रिपुरा में है।
विधायकों को मिलने वाली अन्य सुविधाएं
वेतन और भत्तों के मेडिकल सुविधा, यात्रा भत्ता, एक व्यक्ति के साथ ट्रेन में फ्री यात्रा और कार्यकाल ख़त्म होने के बाद हर महीने पेंशन भी मिलता है।