नई दिल्ली : समान नागरिक संहिता यानी Common Civil Code, इसकी मांग तो लंबे समय से चली आ रही है, लेकिन पक्ष-विपक्ष के विरोध औऱ अन्य संभावित पहलुओं को देखते हुए केंद्र सरकार इसे लागु करने में सावधानी बरत रही है औऱ अभी इस मुद्दे पर कुछ नहीं हो सका है, लेकिन उत्तराखंड में सरकार गठन के साथ ही समान नागरिक संहिता को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। इसका कारण यह है कि सरकार गठन के साथ ही कैबिनेट की पहली बैठक में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने समान नागरिक संहिता (Common Civil Code) को लेकर प्रस्ताव पारित कर दिया। हालांकि राज्य सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता लागू किया जा सकता है या नहीं यह एक अलग सवाल है, लेकिन सीएम धामी के इस प्रयास को इस दिशा में पहल माना जा सकता है।
गौरतलब है कि चुनाव से पहले पुष्कर सिंह धामी ने समान नागरिक संहिता लागू करने का वादा किया था और सरकार गठन होते ही उन्होंने अपने चुनावी वादे की ओर कदम बढ़ा दिया है। उन्होंने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि विगत 12 फरवरी 2022 को उन्होंने जनता से समान नागरिक संहिता का वादा किया था और इससे संबंधित प्रस्ताव लिया गया और जल्द ही प्रदेश में इसे लागू किया जाएगा।
हालांकि जैसी की उम्मीद थी, इस निर्णय का विरोध भी शुरू हो चुका है। कई लोग सीएम धामी के इस फैसले को गलत बता रहे हैं। उत्तराखंड कांग्रेस के नेता वसीम जैदी ने इस निर्णय पर आपत्ति जताते हुए कहा कि कानून नागरिकों को मौलिक अधिकारों पर कुठाराघात होगा। वहीं भाजपा नेता शादाब शम्स ने कांग्रेस नेता की आपत्ति को खारिज करते हुए कहा कि जिन नागरिकों के अधिकारों के प्रभावित होने की आशंका जतायी जा रही है, उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा, बल्कि वे और सशक्त होंगे। इससे उन्हें और अधिकार हासिल होंगे।
वहीं उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी कहते हैं कि समान नागरिक संहिता लागू करने से राज्य में सभी वर्ग के लोगों के समान अधिकारों को बढ़ावा मिलेगा। इससे सामाजिक सद्भाव में बढ़ोतरी होगी साथ ही महिलाएं सशक्त बनेंगी।
कॉमन सिविल कोड पर शुरू से ही कायम है विवाद
आपको शायद पता नहीं होगा, लेकिन जब पहली बार समान नागरिक संहिता की मांग उठी थी, उसी वक्त से इसे लेकर विवाद शुरू हो गया था। मामला संविधान निर्माण की प्रक्रिया से जुड़ी है। उस वक्त संविधान सभा में समान नागरिक संहिता के पक्ष-विपक्ष में जमकर बहस भी हुई। बताया जाता है कि बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने पर्सनल लॉ का न केवल विरोध किया बल्कि देश के सभी नागरिकों के लिए समान कानून व्यवस्था की वकालत की थी। लेकिन उस वक्त किसी की नहीं चली। बताया जाता है कि संविधान सभा के मुस्लिम मेंबर पर्सनल लॉ की मांग पर अड़े रहे और अंततः सब कुछ उनके मुताबिक ही हुआ।
हालांकि, बाद में तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू ने हिंदू पर्सनल लॉ को सिविल कोड में तब्दील करने का फैसला किया। बात वर्ष 1955 की है। जवाहर लाल नेहरू ने हिंदू कोड बिल के जरिए हिंदू पर्सनल लॉ कोड बनाने का प्रयास किया था। उस वक्त हिंदू सांसदों ने सवाल उठाया कि केवल हिंदुओं के पर्सनल लॉ में क्यों दखल दिया जा रहा है, मुस्लिम या क्रिश्चियन के पर्सनल लॉ कोड क्यों नहीं बनाया जा रहा? उस वक्त पंडित नेहरू ने कहा था कि मुस्लिम इसके लिए तैयार नहीं हैं।
यहां गौरतलब है कि आजादी के वक्त संविधान सभा में मुस्लिम सदस्यों ने समान नागरिक संहिता पर जो आपत्ति जतायी वह आज तक चली आ रही है, और वे इसके लिए तैयार नहीं हो रहे हैं। बता दें कि आजादी के बाद कई ऐसे मामले भी सामने आए, जब समान नागरिक संहिता की जरूरत महसूस हुई ताकि मुस्लिम महिलाओं के अधिकार प्रभावित न हो, लेकिन कुछ नहीं हुआ। अब सीएम धामी का यह प्रयास प्रदेश में किस तरह सामने आता है यह देखने वाली बात होगी।