दुमका:- विकास की बाट जो रहा एक ऐसा गाँव जहाँ के ग्रामीण आजादी के 75 वर्षों बाद भी सड़क तथा स्वच्छ पेयजल जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। यह मामला है जरमुण्डी प्रखंड के भोड़ाबाद पंचायत के बसगोहरी गाँव का। चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा प्राकृतिक छटा बिखेरता आदिवासी बाहुल्य बसगोहरी गाँव के ग्रामीण वर्षों से उपेक्षा का दंश झेल रहे है। बसगोहरी गाँव पहुँचने के लिए कोई सड़क नहीं है।पगडंडियों के सहारे एक किलोमीटर चलकर ग्रामीण मुख्य सड़क तक पहुँचते हैं।और तो और ग्रमीणों को स्वच्छ पेयजल तक नसीब नहीं है।गाँव में स्थित एक मात्र कुँए के पानी से ग्रामीण अपनी प्यास बुझाते हैं लेकिन भीषण गर्मी के कारण यह कुँआ भी सूख गया है। बूंद बूंद पानी को तरस रहे ग्रामीणों ने गांव के बाहर खेत में एक गड्ढा खोद कर पीने के पानी की व्यवस्था की है और उसी गड्ढा का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। गांव में एक स्कूल भी है और स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे इसी डोभा का पानी बोतल में भरकर अपने साथ स्कूल ले जाते हैं।
वहीं विद्यालय में एमडीएम निर्माण के लिए रसोईयाओं को भी उसी गड्ढे के जल का उपयोग करना पड़ता है।इस गांव में आज तक चांपानल नहीं लगा है। चापानल यहाँ के लोगों के लिए सिर्फ सपना बनकर रह गया है। ग्रामीण बताते हैं कि सड़क पानी जैसी समस्याओं को लेकर जनप्रतिनिधियों से लेकर अधिकारियों तक कई बार गुहार लगाई परंतु उनकी समस्याओं पर किसी ने ध्यान नहीं दिया और हालात जस के तस हैं। हालांकि स्थानीय विधायक एवं कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने मामले पर संज्ञान लेते हुए कहा है कि जल्द ही इस गांव में स्वच्छ पेयजल की समुचित व्यवस्था बहाल कर दी जाएगी।
बहरहाल जो भी हो गर्मी छुट्टी के बाद स्कूल भी खुल जाएंगे और बच्चे विद्यालय में पढ़ने आएंगे लेकिन क्या उन्हें शुद्ध पेयजल नसीब हो पाएगा या फिर वे अपने साथ गड्ढे का ही पानी बोतलों में भरकर विद्यालय आएंगे यह देखना दिलचस्प होगा।