आदिवासी सेंगेल अभियान की एक बैठक पूर्वी सिंहभूम जिले के पटमदा प्रखंड के खेड़ूआ पंचायत के काला झरना ग्राम में संपन्न हुई। बैठक में आसपास के कई गांव के लोग आए थे। बैठक में मुख्य अतिथि सेंगेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने विस्तार से सेंगेल के विचारों को गांववालों के बीच रखा। प्रत्येक आदिवासी गांव- समाज में एजेंडा, एकता और समाज सुधार की कमी है। इसके लिए आदिवासी स्वशासन व्यवस्था के वंशानुगत माझी परगना और मानकी मुंडा आदि सर्वाधिक दोषी हैं। आज लगभग कोई भी आदिवासी गांव- समाज में मरांग बुरु बचाव, सरना धर्म कोड लागू करो, संताली को झारखंड की प्रथम राजभाषा बनाओ और अन्य आदिवासी भाषाओं को समृद्ध करो, सीएनटी एसपीटी कानून लागू करो, शिक्षित बेरोजगारों को रोजगार दिलाओ, विस्थापन पलायन रोको, झारखंड आदिवासियों का गढ़ है इसको बचाना है, आसाम अंडमान के झारखंडी आदिवासियों को एसटी बनाओ आदि आदि कोई भी आदिवासी एजेंडा पर किसी भी आदिवासी गांव- समाज में आज चर्चा नहीं है। अतएव अविलंब चर्चा की जरूरत है। दूसरी तरफ प्रत्येक गांव समाज में एकजुट होकर आदिवासी अस्तित्व, पहचान, हिस्सेदारी को बचाने की एक वृहद एकता का विजन मिशन एक्शन प्लान नहीं है। प्रत्येक गांव- समाज में आदिवासी एकजुट नहीं है। विभिन्न कारणों से टुकड़ों में विभक्त है। अतः प्रत्येक गांव समाज की एकता की कमी से बड़ी जन आंदोलन को सफल बनाना असंभव है।
तीसरा- प्रत्येक गांव समाज में नशापान, अंधविश्वास, डायन प्रथा,आदिवासी महिला विरोधी मानसिकता, ईर्ष्या द्वेष, राजनीतिक कुपोषण अर्थात राजनीति की सूझबूझ की कमी से वोट को हँड़िया दारू चखना में खरीद बिक्री का परंपरा चालू है। अतएव प्रत्येक गांव- समाज में समाज सुधार भी जरूरी है।
राजनीति ही समाधान है। परंतु चूंकि जेएमएम जैसी पार्टी ने अब तक हासा भाषा जाति धर्म रोजगार आदि आदिवासी एजेंडा को बचाने वाली राजनीति की जगह इनको बेचने वाली राजनीति चला रखा है। तो आदिवासी और झारखंड की बर्बादी रोकना कैसे संभव है। सोरेन खानदान से पिता-पुत्र 5 बार सीएम बन चुके। गुरुजी 40 सालों से आदिवासियों का सर्वाधिक वोट लेकर राजनीति में काबीज है। मगर न स्थानीयता नीति, न आरक्षण नीति और न नियोजन नीति बना सके। न आदिवासी एजेंडा को स्थापित कर सके। न बृहद आदिवासी एकता बना सके और ना आदिवासी समाज में सुधार लाने का अब तक कोई ठोस प्रयास किया है। बल्कि केवल नोट और वोट की राजनीति करते हुए अब तक लूट, झूट और भ्रष्टाचार का रिकार्ड ही स्था किया है। झारखंड को बचाने की जगह बेचने का काम किया है।
ऊपर से झामुमो ने केवल वोट और नोट की लोभ लालच में वंशानुगत नियुक्त अधिकांश अनपढ़, पियक्कड़, संविधान- कानून से अनभिज्ञ आदिवासी स्वशासन व्यवस्था के अगुआ – माझी परगना, मनकी मुंडा आदि को तुच्छ लाभ देकर जगाने की जगह सुलाने का काम जारी रखा है। माझी परगना आदि को मानदेय देना, मोटरसाइकिल की खरीद और माझी हाउस आदि देने की पेशकस समाज हित नहीं बल्कि वोट लेने का षड्यंत्र मात्र है।
कुर्मी महतो को एसटी बनाने की अनुशंसा कर झामुमो ने असली आदिवासी समाज को फांसी के फंदे में लटकाने का जुगाड़ भी बैठा दिया है।
ईसाई बने आदिवासी भी झामुमो के साथ इस खतरनाक गठजोड़ का हिस्सा हैं। जिनको आदिवासीयत से ज्यादा ईसाईयत की फ़िक्र रहती है। अंततः भाजपा- आरएसएस का डर दिखाकर जेएमएम- कांग्रेस के साथ चिपक कर असली सरना आदिवासियों को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं।
मगर आदिवासियों का दुर्भाग्य है कि झामुमो के अलावे दूसरी राजनीतिक दलों के पास भी आदिवासियों के दिल की धड़कन दूर-दूर तक कम सुनाई पड़ती है। जिसका बेवजह फायदा झामुमो लेता हुआ दिखाई पड़ता है।
झारखंड के पुनर्निर्माण में अनेक आदिवासी सामाजिक संगठन, शिक्षित एवं नौकरी- पेशा में शामिल आदिवासी आदि का योगदान नगण्य जैसा है। चूँकि इनको राजनीति से एलर्जी है। अंतत: जो झारखंड के पुनर्निर्माण का सर्वाधिक शक्तिशाली हथियार राजनीति है। उसका उपयोग वे प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष नहीं करते हैं। आखिर आदिवासियों के लिए झारखंड अलग राज्य क्यों मांगा था? अन्ततः अनपढ़, बेवकूफ की तरह व्यवहार करते हुए ये पढ़े लिखे लोग और अधिकांश आदिवासी सामाजिक संगठन, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और भारत के संविधान का, राजनीति से दूर भागकर, घोर अपमान करते हैं। राजनीति की बात नहीं करना झारखंड और आदिवासी जनजीवन के पुनर्निर्माण में योगदान की बजाय धोखा देने जैसा है।
दूसरा इनको गांव- समाज में चालू जनतंत्र और संविधान विरोधी आदिवासी स्वशासन व्यवस्था को सुधारने में कोई दिलचस्पी नहीं है। झारखंड के पुनर्निर्माण के लिए आदिवासी गांव- समाज में आदिवासी एजेंडा को लागू करने, बृहद आदिवासी एकता बनाने और आदिवासी गांव- समाज में समाज सुधार लाने जैसी कोई सोच और कार्य योजना नहीं रखते हैं। केवल खाना-पीना, नाचना गाना, इधर उधर की बातें करना, पिकनिक मनाना, टाइम पास करना इन आदिवासी संगठनों और पढ़े-लिखे नौकरी पेशा में शामिल आदिवासी समाज के लोगों का धंधा बन गया है। लुटते मिटते, बर्बाद हो रहे सोने जैसे झारखंड को बचाने, आदिवासी समाज के पुनर्जागरण आदि में इनका लगभग कोई योगदान नहीं है। इन सब की सोच और क्रियाकलाप वंशानुगत स्वशासन व्यवस्था ( माझी परगाना, मंकी मुंडा आदि ), झामुमो जैसे गलत राजनीतिक क्रियाकलाप के साथ एक गठबंधन का हिस्सा बन गया है। असेका, माझी परगाना महाल, कुछ संताल लेखक संगठन आदि इसमें शामिल दिखते हैं।
आदिवासी सेंगेल अभियान भारत के सात प्रदेशों और पड़ोसी देशों में भी सक्रिय है। आदिवासी सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए लगभग 300 प्रखंडों में प्रयत्नशील है। सेंगेल ने 30 जून 2023 को कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में “विश्व सरना धर्म कोड जनसभा” करने का बेहद बड़ा फैसला लिया है। महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा बनाते हुए 2023 में हर हाल में सरना धर्म कोड को लागू कराने का दृढ़ संकल्प किया है।
बैठक के अंत में बलराम मुर्मू को सर्वसम्मति से काला झरना ग्राम सेंगेल माझी नियुक्त किया गया।
बैठक में सेंगेल के केंद्रीय संयोजक सुमित्रा मुर्मू, सेंगेल युवा छात्र मोर्चा केंद्रीय संयोजक तिलका मुर्मू, सेंगेल पटमदा प्रखंड परगना चुनाराम टुडू, बुद्धेश्वर मुर्मू, बोड़ाम प्रखंड अध्यक्ष सुरेन चंद्र हांसदा, बोड़ाम प्रखंड सचिव सह परगना सुनील मुर्मू, संदीप मुर्मू, सगुन टुडू, महेश्वर मुर्मू, सेंगेल पटमदा प्रखंड सचिव शिवनाथ मांडी, घनश्याम टुडू इत्यादि मौजूद थे।