आज विश्व जल दिवस यानी वर्ल्ड वाटर डे (World Water Day) है। इस साल का थीम है भूजल : अदृश्य को दृश्यमान बनाना (Groundwater: Making The Invisible Visible)। गर्मियों का मौसम है और अभी से ही कई जगहों पर पानी की किल्लत भी शुरू हो गई है। इसका मुख्य कारण भूजल का बेतरतीब तरीके से दोहन करना है। तेजी से हो रही शहरीकरण भी जल संकट के एक प्रमुख कारणों में से एक है। जिस तरह कंक्रीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं, इस कारण धरती रिचार्ज नहीं हो रही है, क्योंकि बारिश का पानी धरती के अंदर न जाकर बहकर निकल जा रहा है। इस कारण भूजल स्तर (ground water) दिन प्रतिदिन नीचे की ओर चला जा रहा है।
अगर जमशेदपुर की बात करें तो यहां पानी की स्थिति काफी भयावह है। इतना ही नहीं झारखंड के कई जिलों में भूजल स्तर (ground water level) काफी नीचे चला गया है। कई जिलों में तो जलस्तर 6 से 7 मीटर तक नीचे जा चुका है।
पूर्वी सिंहभूम जिला के ग्रामीण इलाकों की स्थिति तो काफी हद तक सही है, लेकिन जमशेदपुर शहर और आस-पास के एरिया में ग्राउंड वाटर लेवल की स्थिति भयावह हो गई है। स्थिति को देखते हुए राज्य के कई जिलों को जल दोहन क्षेत्र घोषित कर दिया गया है। इनमें जमशेदपुर भी शामिल है।
जमशेदपुर प्रखंड के ज्यादातर पंचायतों में ग्राउंड वाटर की स्थिति बदतर है। लगातार बोरिंग और अन्य तरीके से जल दोहन के कारण स्थिति भयावह होती जा रही है। जमशेदपुर प्रखंड के 55 पंचायतों में से 30 अति जल दोहन की चपेट में हैं। इनमें शहरी क्षेत्र के साथ ही आस-पास के अन्य इलाके शामिल हैं।
जमशेदपुर में जल दोहन की बात करें तो स्थिति काफी भयावह है। यहां 100 प्रतिशत से कहीं ज्यादा यानी करीब 107 प्रतिशत भूजल का दोहन किया जा रहा है। शहरी क्षेत्र के भूजल स्तर की बात करें तो एक साल पहले ही यह 15.9 मीटर नीचे जा चुका है।
सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड की पिछले साल यानी वर्ष 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक पूर्वी सिंहभूम जिले में बहरागोड़ा, बोड़ाम, चाकुलिया, धालभूमगढ़, डुमरिया, घाटशिला, गुड़ाबांधा, मुसाबनी, पटमदा और पोटका की स्थिति ठीक है लेकिन गोलमुरी सह जुगसलाई प्रखंड की स्थिति अति जल दोहन की श्रेणी में है।
जमशेदपुर से सटे सरायकेला-खरसावां जिले की बात करें तो यहां के सभी जिले सेफ जोन में हैं। पश्चिम सिंहभूम जिले के प्रखंडों की भी यही स्थिति है। यानी वाटर क्राइसिस की स्थिति से सबसे ज्यादा कोल्हान के शहरी और उससे सटे क्षेत्र प्रभावित हैं।
इसी तरह राजधानी रांची की बात करें तो कांके और खेलारी सेमी क्रिटिकल तो सिल्ली क्रिटिकल जोन में है। इसके अलावा अन्य जिलों की स्थिति ठीक है।
झारखंड में जल दोहन वाले क्षेत्रों की बात करें तो इनमें पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम के अलावा रांची, धनबाद, गुमला, लोहरदगा, चतरा, गिरिडीह, बोकारो, पलामू, गढ़वा, लातेहार, दुमका, जामताड़ा, देवघर, गोड्डा, साहेबगंज और पाकुड़ सहित अन्य जिले शामिल हैं।
वाटर रिचार्ज के लिए वाटर हार्वेस्टिंग (water harvesting) जरूरी है, लेकिन इसका सही तरीके से अनुपालन नहीं हो रहा है। स्थिति यह है कि बारिश का पानी बहकर शहर से बाहर निकल जा रहा है औऱ इस कारण शहरी क्षेत्र में स्थिति भयावह हो चली है।